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= आस्था की ओर बढ़ते कदम में से था। इस समारोह के माध्यम से हमें हमारी साहित्य प्रेरिका संथारा साध्वी श्री स्वर्णकांता जी का अभिनंदन अभिनंदन ग्रंथ के माध्यम से करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
जैन धर्म के प्रसिद्ध विद्वानों को करीब से देखने, उनसे बातें - करने का सौभाग्य मिला। . ... इस समारोह में महासाध्वी उपप्रवर्तनी श्री स्वर्णकांता जी महाराज के शिष्य परिवार का हर प्रकार का सहयोग रहा। अम्बाला श्री संघ, स्थानीय संस्थाओं द्वारा उन्हें अभिनंदन पत्र प्रस्तुत किए गए। हमारी संस्था व श्री संघ ने साध्वीयों को शाल ओढ़ाए गए।
इसके एक वर्ष बाद हमारी गुरूणी बीमार पड गई। यह बीमारी उनके देवलोक का कारण बनी। वह लगभग २ साल मृत्यु से लडती रहीं। अंतिम ११ दिन का संथारा उन्हें आया। उनके जीवन के साथ हमारा जीवन भर नाता रहा। वह सरलात्मा, घोर तपस्वनी, पर उपकारी साध्वी थीं। जिन शाषण का श्रृंगार थी। सपष्ट वक्ता, निर्भिक श्रमणी थी। उन्होंने असत्य से कभी समझौता नहीं किया था। उनके गुणगान का वर्णन किसी शब्दों का मोहताज नहीं। उनका स्मारक, उनके साहित्य कार्य हैं। अंतिम समव भी हम दोनों ने भगवान महावीर का सचित्र जीवन चारित्र लिख कर प्रकाशित किया। यह ग्रंथ उन्हें ही समर्पित था। इस ग्रंथ के अतिरिक्त उनकी शिष्याओं ने हमें प्रेरणा देकर एक महत्वपूर्ण संस्था का निर्माण साध्वी श्री राजकुमारी जी महाराज व साध्वी श्री सुधा जी महाराज ने सन्मति नगर कुप्प में आदिश्वर धाम के प्रांगण में किया। दोनों साध्वीयों ने अपने कीमती ग्रंथ साध्वी स्वर्णा जैन इस पुस्तकालय को भेंट स्वरूप दिए।
हमारे साहित्य के अंर्तगत हमने हमारे द्वारा
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