________________
- आस्था की ओर बढ़ते कदा ७. देव का आस्तित्व ८. नरक ६. पुण्य-पाप १०. परलोक ११. मोक्ष
प्रभु महावीर का यह व्राह्मण शिष्य वन गए। प्रभु महावीर को क्रान्ति का विगुल वज चुका था। फिर जो प्रभु की शरण में आया वह प्रभु महावीर के शिष्य बन गया, उस का कल्याण होता गया। प्रभु महावीर ने इन लोगों से प्रश्नों का उत्तर, वेदिक ग्रंथों के आधार पर दे कर अनेकांतवाद के सिद्धांत को भी स्थापित किया। इस अध्ययन में चन्दनवाला के दीक्षा का भी उल्लेख है। इस प्रकार महावीर ने चतुविधि श्री संघ की स्थापना की। अगले अध्ययन का नाम तीर्थ स्थापना है। प्रभु महावीर व दो प्रकार का धर्म वर्णन किया। १. श्रमण धर्म २. श्रावक धर्म। प्रभु महावीरं द्वारा वताए धर्म की व्याख्या का संक्षिप्त वर्णन किया गया है। प्रभु महावीर ने नव तत्व, षट् द्रव्य, पांच महाव्रत, समिति, गुप्ति, अणुव्रत, विषयों का संक्षिप्त वर्णन किया है उसका उल्लेख
है।
खण्ड - ५ . इस में एक ही अध्ययन है, वह है प्रभु महावीर द्वारा अपने धर्म का प्रचार। प्रभु महावीर ने ४२ वर्ष तक राजा के महलों से गरीव की झोपडी तक अपना पवित्र संदेश पहुंचाया। इस खण्ड में आंकलन वर्ष वार व्योरे द्वारा किया गया है। प्रभु महावीर के दरवार में राजा रंक एक वरावर थे। प्रभु महावीरे के यह देश, काल, जाति, लिंग रंग व नस्ल का भेद नहीं था। प्रभु के उपासक में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र, किसान, कुम्हार, चण्डाल तक स्त्री, पुरुष सभी वरावरी के साथ प्रभु उपदेश सुनने, के अधिकारी थे। अर्जुन माली जैसे साधु बन गए। अनेकों विदेशी साधक भी उनके धर्म संघ
224