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- आस्था की ओर बढ़ते कदम समय पर होना असंभव था। यह हमारे लिए परम-सुखद अनुभव था। इस माध्यम से हम अपनी गुरूणी का पहला परिचय उन्हें समर्पित कर सके।
इस अवसर पर ज्ञानी जी द्वारा प्रदत चादर भी बैंड-वाजे सहित श्री संघ लेकर आया। जिसे श्री संघ की साक्षी से पहले उन्हें समर्पित किया गया। फिर वहां विराजित सभी साधु साध्वीयों ने चादर को स्पर्श कर जैन ज्योति पद को अनुमोदित किया। इस तरह इस पुस्तक का, समारोह रंगारंग रहा। हमारा सन्मान भी श्री संघ अम्बाला ने किया। इस अवसर पर पंजावी विश्वविद्यालय के धर्म अध्ययन विभाग के अध्यक्ष डा० एच०एस. कोहली सपरिवार पधारे। श्री संघ ने उनका व हमारा शाल द्वारा सन्मान किया। इस अवसर पर साध्वी श्री ने हमारे कार्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने सारा श्रेय हमें दिया। हालांकि उनके आशीवाद के विना सव असंभव था। प्राचीन काल में जैन धर्म ४ :
प्राचीनकाल से पंजाव के विभिन्न भागों में जैन धर्म का अपना महत्वपूर्ण स्थान है। इस स्थान का पंजाव का इतिहास लिखने वालों ने कभी ध्यान नहीं दिया। हमारी एक पुरतक पुरातन पंजाब विच जैन धर्म लिखने के वाद इस का महत्व बहुत वढ गया है। क्योंकि यह पुस्तक पंजावी भाषा में थी हिन्दी भाषा के जानकार हमारे दृष्टिकोण से अनिभिज्ञ रहते थे। इस कमी को पूरा करने के लिए एक शोध निबंध इस विषय पर लिखा। इस प्रकाशन जैन धर्म की शोध पत्रिका 'अहंत वचन' में हुआ। जिसे कुन्दकुद जैन ज्ञानपीट इन्दोर प्रकाशित करती है। इस त्रैमासिक पत्रिका के सम्पादक डा० अनुपम जैन हैं। यह १२ पृष्ट का निबंध था
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