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=ામ્યા ગોર લટો દમ परम्परा ने मुझे प्रदान किया है। मुझे तो परम समाधि को पाना है। ज्ञान-दर्शन चारित्र तप की अराधना में डूवे रहने के ईलावा मुझे संसार से कुछ लेना नहीं। आप वार वार पुरतकों में मेरा उल्लेख क्यों करते हो ? उल्लेख तो महान आत्माओं का होना चाहिए, जो संयम, तप, ज्ञान में मेरे से महान हैं।"
परन्तु हमारा फैसला था कि महाराज श्री का एक प्रमाणिक जीवन चरित्र हिन्दी में लिखना है। हम ने साधु साध्वीयों की सहायता से ग्रंथ का लेखन कार्य शुरू किया। हमें प्रसन्नता है कि इस ग्रंथ की भूमिका भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह जी ने स्वयं लिखी थी, जिसमें उन्होंने प्राचीन जैन परम्परा में भगवान महावीर के योगदान प्राचीन जैन साध्वीयां, हमारे चारित्र. नायिका द्वारा किए पंजावी जैन साहित्य के कार्य का उल्लेख किया था। इस भूमिका के लिए मेरे धर्म भ्राता रविन्द्र जैन ने बहुत प्रयत्न किया। क्योंकि राष्ट्रपति भवन में किसी पुरतक के लिए दो शब्द लिखने के लिए पुस्तक को लम्बी वैधानिक प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। इस प्रक्रिया में ज्ञानी जी के सचिव श्री गुरचरण सिंह पंछी का अच्छा मैत्रीपूर्ण सहयोग रहा।
- यह पुस्तक प्रकाशित हुई। इस का विमोचन अम्बाला शहर में सम्पन्न हुआ। इस समारोह में स्व. प्रवर्तक भण्डारी श्री पद्म चन्द्र जी महाराज अपने शिष्य उपप्रवर्तक श्री अमर मुनि जी के साथ विराजमान थे। इस पुस्तक का विमोचन श्री आत्मा राम जैन एडवोकेट हनुमानगढ़ ने किया। यह पुस्तक का प्रकाशन मेरे धर्मभ्राता रविन्द्र जैन ने जालंध पर से करवाया। इस का प्रमुख कारण पुस्तक को शीघ्र प्रकाशित करना था। क्योंकि दीक्षा जयंती दिन करीव आ रहा था। लुधियाना की आत्म जैन प्रिटिंग प्रेस से यह कार्य
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