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= आस्था की ओर बढ़ते कदम अनमोल वचन १० :
हमारी गुरूणी, जिनशाषण प्रभाविका, जैन ज्योति साध्वी श्री स्वर्णकांता जी महाराज खाली प्रवचन कर या पंजावी जैन साहित्य की प्रेरिका ही नहीं, बल्कि स्वयं संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी व पंजावी की लेखिका थी। उन्होंने हिन्दी भाषा में जैन धर्म के प्राचीन काव्यों का संकलन किया। प्राचीन जैन . हस्तलिखित भण्डारों की सूची तैयार की थी। अम्बाला में अनेकों आचार्य, मुनियों व साध्वी को उन्होंने सन्मान करने का सौभाग्य मिला। उनकी साहित्य जगत की सेवा भी कम नहीं। पर पंजाबी भाषा में उनकी एक कृति 'अनमोल वचन'
मानव मात्र को जीने की कला सिखाती है। वह प्राचीन लिपि __ पढ़ने में सक्षम थे। उनकी लेखनी सदैव चलती रहीं। इस
पुस्तक की कापीयां उन्होंने हमें गिदडवाहा चतुर्मास में प्रदान की करते हुए कहा था "हमारी छोटी सी पंजाबी किताब को देखो। अगर प्रकाशन के योग्य हो तो प्रकाशित करवा दो।"
हम ने इस की कापीयां देखी। अनुवाद की भाषा के कुछ सम्पादन की कमी थी। हम दोनों ने सारी कापीयों को पढ़ा। इस में योग्य संशोधन किए। सब से बड़ी बात इस ग्रंथ का सम्पादन था जिन्हें हमने मात्र १८ दिनों में करके, पुरतक, प्रकाशन करने हेतु श्री आत्म जैन प्रिटिंग लुधियाना को भेज दी। इस पाकेट वुक का टाईटल आर्कषक है। महाराज श्री उन दिनों उप-प्रवर्तक श्री चन्दन मुनि जी महाराज से जैन शास्त्र व जैन ज्योतिष का स्वाध्याय कर रही थी। इतनी व्यवस्था में उन्होंने जैन ग्रंथों से सुन्दर सुक्त निकाल कर इस पुस्तक को तैयार किया था। इस पुस्तक की विशेषता है कि इसे कहीं से पढो, नए विचार प्राप्त होते हैं। यह पुस्तक हमेशा नई रहती है। कहीं से भी पढ़ो हर पृष्ट
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