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= વાસ્થા ની ગોર છ૮મ प्रेरणा देने वाला व जीवन में क्रान्ति उत्पन्न करने वाला है। . इस ग्रंथ का विमोचन पंजावी विश्वविद्यालय में उप-कुलपति ने किया था। यह ग्रंथ जन साधारण में खूब वांटा गया। नैतिक ग्रंथ होने के कारण यह अद्भुत शिक्षा से भरा था। यह हमारे पंजावी साहित्य की कथा है। हम अगले अध्ययन में हिन्दी साहित्य की चर्चा होगी। मैंने इस प्रकाय में हम दोनों द्वारा रचित, अनुवादित, व साध्वी श्री स्वर्णकांता जी महाराज 'द्वारा संपादित साहित्य का विशलेषण किया है। मैंने स्थान स्थान पर हर पुस्तक के पीछे छिपे उदेश्य का उल्लेख किया। वहां इन पुस्तकों को लिखने में आई रूकावटों का वर्णन किया है। इन पुस्तकों के प्ररिका व विमोचन कर्ता का उल्लेख किया है। कई पुस्तकों की समिक्षा दैनिक अजीत, दैनिक ट्रिब्यून, जैन एंटीकटी, जैन जनरल, अमर भारती व गुणरथल में विस्तृत रूप से प्रकाशित हो चुकी है। पुरातन पंजाब विच जैन धर्म व भगवान महावीर ग्रंथ की समीक्षा को पंजावी विश्वविद्यालय पटियाला के धर्म अध्ययन की पत्रिका में अंग्रेजी भाषा में विस्तृत रूप से प्रकाशित हुई। इसी तरह उपासक दशांत सूत्र की समीक्षा जैन ऐंटीकयुटी जैन जनरल व पंजाव सौरभ में विस्तृत रूप से प्रकाशित हुई। हमारे प्रसिद्ध समिक्षाकारों में डा० धर्म पाल सिंघल, डा० धर्म सिंह, डा० गणेश ललवाणी, प्रसिद्ध नावलकार श्री ओम प्रकाश गासो, डा० वजीर सिंह, डा० जगतार के नाम उल्लेखनीय हैं। श्री सूत्रकृतांग सूत्र के कुछ अंश श्रीमती अमृता प्रीतम जी ने नागमणि के लिए संकलन कर प्रकाशित किए। श्री सूत्रकृतांग सूत्र की समीक्षा दैनिक पंजावी ट्रिब्यून व यूनिवर्सिटी की पत्रिका में प्रकाशित हुई
हमें सम्मेलनों के माध्यम से जैन पंजावी साहित्य संसार के कोने कोने तक पहुंचाने का सौभाग्य मिला है।
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