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- aણ્યા શી વોર હો દમ सागर हैं। दोनों प्रश्न उत्तर के रूप में हैं। यह प्रश्न जैन धर्म, साधु जीवन व गृहस्थ जीवन से सबंधित है।
इन प्रश्नों के उत्तर जीवन की समस्याओं का समुचित समाधान प्रस्तुत करते हैं। इन ग्रंथों को एक बार पढ़ने से ऐसा लगता है कि जीवन रूपी पुस्तक के पन्ने कोई पल्ट रहा हो। इन ग्रंध के माध्यम से इस ग्रंथ के विद्वान मुनि की विद्वता का पता चलता है। प्रथम पुस्तक में प्रश्नों की गिनती ज्यादा है। जद कि दूसरी पुरतक आकार में लघुकाया है। इन रचनाओं से आचार्य ने अपने अनुभव प्रश्न के रूप में प्रस्तुत किये हैं। प्रश्न के साथ ही उसका उत्तर है।
ऐसी कृति कम देखने को मिलती है फिर ऐसी रचना, जिस का कता कभी एक प्रदेश का राजा रहा हो, कम उपलब्ध है। राजाओं का जीवन भोग प्रधान होता है। भोग से त्याग का जीवन एक क्रान्ति का उद्घोष है। यही उद्घोष इन प्रश्नों के उत्तरों में इलकता है। यह ग्रंथ दक्षिण को उत्तर से जोड़ता है। दक्षिण भारत के आचार्य ने संस्कृत में बहुत कार्य किया है। इस का उत्कृष्ट उदाहरण यह सार गर्भित ग्रंथ है। इन दोनों पुस्तकों के ४५ पृष्ट हैं। इसका विमोचन पंजावी विश्वविद्यालय में हुआ था।
अप्रकाशित संस्कृत साहित्य सिन्धुर प्रकरण १ :
सिन्धूर प्रकरण ग्रथ का संस्कृत साहित्य में अपना महत्व है। यह ग्रंथ भी ऐसा है जिसे श्वेताम्बर-दिगम्वर दोनों मानते हैं। यह नीती परक ग्रंथ है। जैसे पंचतंत्र में व्यवहारिक ज्ञान है। इस प्रकार इस ग्रंथ में ज्ञान भरा पड़ा है। इस के लेखक अज्ञात हैं। पर इस ग्रंथ पर संस्कृत भाषा में दिगम्बर आचादों ने काफी कार्य किया है। यह रवीं
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