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- आस्था की ओर बढ़ते कदम शताव्दी की रचना लगती है। यह रचना मेरे धर्मभ्राता श्री रविन्द्र जैन ने मुझे ३१ मार्च को समर्पित किया था। अभी तक इसका प्रकाशन नहीं हो सका।
हमारा हिन्दी से पंजाबी भाषा में
अनुवादित प्रकाशित साहित्य
जैसे मैं कई स्थानों पर लिख चुका हूं कि पंजाव की राज्य व जन संपर्क की भाषा पंजाबी है। इस दृष्टिकोण को सामने रख कर हमने पंजावी भाषा में लिखना शुरू किया। पंजाबी साहित्य की कमी हमें शुरू से खटकती रही है। इस का प्रमुख कारण है कि जैन धर्म के प्रति पंजाब के लोगों की अज्ञानता। इस अज्ञानता को मिटाने का प्रमुख साधन प्रचार है। प्रचार का प्रमुख साधन भाषा होता है। भाषा वह माध्यम है जो अपनी वात पहुंचाने का सरल व सुगम मार्ग है। जन संपर्क का अच्छा साधन है। धर्म प्रति फैली भ्रांतियों को समाप्त करके आरथा को जन्म देती है। इसी भावना ने हमें सरल साहित्य का पंजावी का अनुवाद करने की प्रेरणा दी। इस का विस्तृत विवरण इस प्रकार है : इक समस्या - इक हल १ :
हम दोनों ने १६७२ के बाद लिखना शुरू किया। हमारी पहली कृति आचार्य तुलसी के शिष्य स्वः हनुमान मुनि 'हरिश' की एक लघु कृति थी। यह पुस्तक प्रश्न उत्तर के रूप में धी। इस के दो भाग थे। प्रथम हिस्सा जैन धर्म से संबंधित था। दूसरा भाग अणुव्रत की व्याख्या थी। इस के पहले भाग का अनुवाद मेरे धर्म भ्राता श्री रविन्द्र जैन ने किया था। यह जैन धर्म के अनुवादित प्रथम पुस्तक थी। मैने इस पुस्तक का प्राक्थन लिखा था, जिस में जैन धर्म की प्राचीन श्रमण परम्परा का उल्लेख था। पर इस में मेरा पूर्ण
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