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आस्था की ओर बढ़ते कदम
क्रियाकाण्डी ब्राहमण थे। पर ज्ञान मद के कारण शास्त्रार्थ में हार गए। हार के पश्चात जैन श्रमण बन गए । फिर अपनी योग्यता के आधार पर आचार्य वने । आचार्य बनने के बाद विपूल मात्रा में संस्कृत साहित्य लिखा । अथ प्रश्नोतर रत्न मालिका
४, प्रश्नोतर
रत्न मालिका ५ :
दक्षिण भारत में काफी लम्बे समय तक जैन धर्म राज धर्म रहा है। अनेकों राजाओं, रानीयों, सामन्तों, मंत्रीयों व समान्य प्रजाजनों ने इस जैन धर्म का पालन किया। पर शंकराचार्य, कुमारिल भट्ट, मंडन मित्र, रामानुज जैसे ब्राहमणों ने जैन धर्म का विरोध स्वयं ही नहीं किया, वर्लक राजाओं से भी करवाया। आज तामिलनाडू, विहार में जैन मंदिर तो हैं पर जैन नहीं। इसी तरह राजा खारवेल के उड़ीसा राज्य में जैन धर्म लोप हो गया। पर जैन धर्म का प्राचीन रूप आज भी महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र में मिल जाता है । कर्नाटक प्रदेश में अनेकों पिछड़ी जातीयां जैन हैं। कर्नाटक वही प्रदेश है जहां आचार्य भद्रवाहु स्वानी अपने शिष्य मुनि चन्द्रगुप्त मोर्य के साथ पधारे। उन्होंने धर्म प्रचार किया। वहां दोनों ने समाधि मरण किया। उनकी समाधि श्रवणवेलगोला में है । इसी स्थान पर गंग वंश के मंत्री व सेनापति चामुण्ड राय ने भगवान बाहुबलि की विश्व प्रसिद्ध प्रतिमा का निर्माण किया। गुजरात के बाद आज भी जैन धर्म कर्नाटक में ग्रामीण स्तर पर पनप रहा है। वहीं अनेकों दिगम्बर जैन तीर्थ हैं। इसी प्रदेश के राजा ने संयम ग्रहण किया। उन्होंने शास्त्रों का भी अध्ययन किया । वहुत कम वर्षों तक तप किया। फिर उन्होंने अपने गुरु की आज्ञा से इस दो लघु ग्रंथों का संस्कृत भाषा में निर्माण किया। दोनों ग्रंथ गागर में
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