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________________ = आस्था की ओर बढ़ते कदम ३. श्रृद्धा : . तीसरे दुर्लभ तत्व के रूप में प्रभु महावीर ने श्रद्धा को महान माना है। वह कहते हैं : "कदाचित (कभी) धर्म का श्रवण भी हो जाए तो उस पर श्रद्धा होना परम दुर्लभ है, क्योंकि बहुत से लोग नैयायिक मार्ग (रत्नत्रय) को छोड़कर भी उस से पथ भ्रष्ट हो जाते हैं। इसका अर्थ यह है कि धर्म को सुनना ही काफी नहीं, धर्म पर श्रद्धा आना बहुत कठिन है। कई लोग धर्म सुन कर भी संशय रखते हैं। इसी तरह कई लोग धर्म को सुन कर कुछ समय के लिए जागृत होते हैं पर मिथ्यात्व के जहर के कारण उसी अज्ञान अवस्था में पड़ जाते हैं जहां से वह निकले थे। इस लिए व्यक्ति को तीन रत्न (सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन व सम्यक् चरित्र) को धारण कर जीवन व्यतीत करना चाहिए, नहीं तो ऐसे हजारों उदाहरण पड़े है, जो मिथ्यात्व के कारण या धर्म के प्रति श्रद्धा के आभाव से इतिहास से मिट गये। जैन इतिहास में जैन सिद्धांत पर अश्रद्धा करने वाले को निन्हव कहा जाता है। जो संयमी होकर भी भटके उन निन्हवों में ६ प्रमुख नाम हैं : १. जमालि २. तिष्यगुप्त ३. आषाढ़भूति ४. अश्वमित्र ५. गंगाचार्य ६. रोहगुप्त ७. गोष्टमाहिल। यह लोग धर्म को जानकर भी संशय में फंस गये। इसी कारण यह मिथ्यात्वी (अज्ञानी) कहलाए। जैन इतिहास में सम्यक्त्व से मोक्ष का कारण माना गया है। सम्यक्त्व के लिए सच्चे देव (अरिहंत-सिद्ध) गुरू व धर्म का स्वरूप जानकर उन पर सच्ची श्रद्धा आना परम आवश्यक है। सम्यक्त्वी हमेशा प्रकाश में रहता है मिथ्यात्वी अंधेरा में जीता व मरता है। मिथ्यात्वी अपना लोक-परलोक मिथ्यात्व के कारण विगड़ाता 5
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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