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- आस्था की ओर बढ़ते कदम २.धर्म श्रवण :
"मनुष्यत्व प्राप्त करना कठिन है। यह जन्म प्राप्त हो भी जाए तो सत्य धर्म की प्राप्ति दुर्लभ है। भगवान् फुरमाते हैं।
"मनुष्य जन्म प्राप्त कर भी धर्म पालन के लिए योग्य परिस्थितियां दुर्लभ हैं इन में आर्य क्षेत्र परम दुर्लभ है। मनुष्य का जन्म ही जीवन का सार नहीं, धर्म पालन के लिए सच्चे देव (अरिहंत , सिद्ध) गुरू व धर्म का शरण कठिन है।"
इसलिए प्रभु महावीर आगे फरमाते हैं :
"मनुष्य देह पा लेने पर भी धर्म का श्रवण (सुनना) परम दुर्लभ है जिसे सुन कर जीव तप, क्षमा और अहिंसा को अंगिकार करता है।"
"इस का अर्थ यह है कि धर्म का सुनना परम दुर्लभ है वह आर्य देश की प्राप्ति का संपूर्ण अंगों की प्राप्ति से संभव है।"
सुनने को प्रभु नहावीर ने "जीवन का दूसरा अंग स्वीकार किया है। क्योंकि अगर आर्य क्षेत्र में मनुष्य का जन्म भी हो जाता है तो कोई विरला ही धर्म सुन पाता है। धर्म श्रवण का बहुत महत्त्व है यह मिथ्यात्व (अज्ञान) के अंधकार को दूर करता है। श्रद्धा रूप ज्योति का प्रकाशक है, जीव आजीव में भेद का विवेचक है, पुण्य और पाप का मार्ग दर्शक है। ऐसे श्रुत चारित्र रूप धर्म का श्रवण बड़े पुण्य से निलता है। यह श्रवण धर्म है जिसे सुन कर जीव तप, क्षमा
और अहिंसा को स्वीकार करता है। यह अमृतपान के सामान, एकान्तहित विधायक और हृदय में आनंद देने वाला है। यह अमृत कलश में ज्ञान तत्व, षट द्रव्य, आठ कर्म, दस धर्म, पांच महाव्रत व पांच अणुव्रत से ज्ञान प्राप्त होता है।