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________________ -आस्था की ओर बढ़ते कदम १. मानव जन्म २. सर्वज्ञों द्वारा कथित सत्य धर्म का श्रवण ३. सत्य धर्म पर आस्था ४. उस आर्य धर्म पर सिद्धांत के अनुसार चलना। १. मानव जन्म : श्रमण भगवान महावीर ने धर्म का प्रथम अंग की व्याख्या करते हुए कहते हैं “विभिन्न प्रकार के कमों का उपार्जन करके, विभिन्न गोत्र वाली जातियों मे उत्पन्न हो कर, पृथक पृथक रूप में प्रत्येक संसारी जीव समस्त विश्व में व्याप्त हो जाता है अर्थात जन्म लेता है।" “जीव अपने अपने कृत अनुसार कभी देवरूप में, कभी इस लोक में, कभी नरक में, कभी असुरकाय में जन्म लेता है।" "यह जीव कभी क्षत्रिय होता है, कभी चण्डाल, कभी वर्णसंकर होता है, कभी कीट पतंग और कभी कुन्थु और कभी चींटी होता है।" "जिस प्रकार क्षत्रिय लोग समस्त भोग उपभोग करने पर भी कभी विरक्ति को प्राप्त नहीं होते, उसी प्रकार कमों से दूषित जीव अनादि काल से आवर्त स्वरूप योनियों से मुक्त नहीं होते।" ( "कमों के संग दूखित और अत्यन्त वेदना से प्रकट जीव योनियों मे दुःख उठाते हैं।" “कालचक्र से कभी कमों का क्षय हो जाने पर यह जीव आत्म शुद्धि प्राप्त करते हैं अर्थात् उस के पश्चात मनुष्यता प्राप्त होती है।" “लोक में वालाग्र मात्र ऐसा प्रदेश नहीं, जहां इस जीव का जन्म मरण न हुआ।"
SR No.009994
Book TitleAstha ki aur Badhte Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPurushottam Jain, Ravindar Jain
Publisher26th Mahavir Janma Kalyanak Shatabdi Sanyojika Samiti
Publication Year
Total Pages501
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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