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है ।
आस्था की ओर बढ़ते कदम
४.
वीर्य :
प्रभु महावीर ने धर्म पर चलने के लिए जो अंतिम सिद्धांत फुरमाया है उसी का नाम संयम के प्रति वीर्य ( शक्ति ) है वह फुरमाते हैं :
“धर्म श्रवण (श्रुति और श्रद्धा प्राप्त) करके भी संयम में वीर्य (शक्ति) लगाना दुलर्भ है । वहुत से व्यक्ति संयम में अभिव्यक्ति रखते हुए भी सम्यक्त्व ग्रहण नहीं कर पाते”
कई लोग धर्म के तीनों अंग प्राप्त होने पर भी संयम के प्रति रूचि नहीं रखते। उस के कारण मिथ्यात्व के उदय ते वह संयम ग्रहण नहीं कर सकते। उन्हें अमृत भी जहर लगता है। वह लोग साधु को असाधु समझते हैं, धर्म को अधर्म समझते हैं। पुण्य को पाप समझते हैं। ऐसे लोग जीवन ने सत्य धर्म को नहीं पा सकते । सारी आयु मिध्यात्व के अंधकार में भटकते रहते हैं। इन्हीं कारणों के कारण प्रभु महावीर को इन्ही तत्वों को परम दुर्लभ बताना पड़ा।
इस में यह बात भी सिद्ध होती है कि जीवन में राष्ट्र, धर्म, कुल, संयम का कितना महत्त्व है संसार में कई देश ऐसे हैं जहां सभ्य समाज नहीं, धर्म नहीं, परिवार नहीं । मात्र परम्पराएं हैं।
२
जीवन में त्रि-रत्न का महत्त्व
सम्यक्दर्शन :
सम्यक्दर्शन के प्रभाव से भावनाओं में जो निर्मलता आती है और संसार, शरीर और भोगों से जो वैराग्य उत्पन्न होता है, उससे व्यक्ति गृहस्थी में रहकर भी
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