________________
मार्गप्रभावना भावना
तीर्थयात्रा करवाकर, या रचवाकर पूजन विधान। चमत्कार या जप करके, करे प्रभावना जिन भगवान्।। जुलूस निकले गाँव शहर, और जगह-जगह दे जिनोपदेश।
जिनमारग प्रभावना करके, पले सच्चा स्व परिवेश।। तीर्थ यात्रा करवाकर, पूजन-विधान आदि रचवाकर, चमत्कार जापानुष्ठान तप की वृद्धि करके, जुलूस आदि निकालकर नगर-नगर चौराहे आदि में उपदेश देकर जिनधर्म की प्रभावना करनी चाहिए। प्रभावना करने से सच्चा परिवेश मुक्ति की प्राप्ति होती है।
सन्मार्ग अर्थात मोक्ष का मार्ग, शांति का रास्ता, उसकी प्रभावना करना, विस्तार करना, प्रसार करना, सो सन्मार्ग प्रभावना है। देखो किस मार्ग से चलें तो वास्तव में मुझे शांति प्राप्त हो। वही तो सन्मार्ग है। आत्मा स्वयं शांति का घर है, ज्ञानानंद का पुंज है, रागाद्वेषादिक परभावों से और परपदार्थों के सम्पर्क से रहित है। ऐसे विशुद्ध ज्ञानानन्दस्वरूप मात्र आत्मतत्त्व की श्रद्धा होना, उसका परिज्ञान होना और उस ही में रमण होना, इसे कहते हैं सन्मार्ग। इस सन्मार्ग की प्रभावना हो, उसे कहते हैं सन्मार्ग प्रभावना।
यह सन्मार्ग प्रभावना खुद के शुद्ध आचरण किए बिना हो नहीं सकती। धन से, धन के खर्च करने से और बड़े-बड़े विधान, पूजा, कल्याणक, पंचकल्याणक आदि सबकुछ समारोह मनाने से, बड़ा धन वैभव खर्च करने से लोगों को क्या सम्मार्ग की छाप पड़ सकती है? अरे! लोगों के हृदय में सन्मार्ग की छाप पड़ेगी तब, जब खुद सन्मार्ग पर चलकर
0_775_n