________________
है वह ईर्यापथिक प्रतिक्रमण है। एक पखवाड़े के दोषों के निराकरण के लिये पाक्षिक प्रतिक्रमण है, चार माहों के दोषों के निराकरण के लिये चातुर्मासिक प्रतिक्रमण है। एक वर्ष के दोषों के निराकरण के लिये सांवत्सरिक प्रतिक्रमण है। समस्त पर्याय-(जीवनभर) के समय के दोषों के निराकरण के लिये अंत्य सन्यासमरण के पहले जो प्रतिक्रमण है, वह उत्तमार्थ प्रतिक्रमण है। ऐसा सात प्रकार का प्रतिक्रमण है। 4।
प्रत्याख्यान : आगमी काल में पाप का आस्रव रोकने के लिये पापों का त्याग करना कि मैं भविष्य में ऐसा पाप मन-वचन-काय से नहीं करूँगा, वह प्रत्याख्यान नाम का आवश्यक है, जो सुगति का कारण है।5।
कायोत्सर्ग : चार अंगुल के अंतर से दोनों पैर बराबर कर खड़े होकर, दोनों हाथों को नीचे की ओर लम्बे लटकाकर, देह से ममता छोड़कर, नासिका के अग्रभाग पर दृष्टि जमाकर, देह से भिन्न शुद्ध आत्मा की भावना करना 'कायोत्सर्ग' है। निश्चल पद्मासन से भी तथा खड़े होकर भी कायोत्सर्ग किया जा सकता है, दोनों ही अवस्थाओं में शुद्ध ध्यान के अवलंबन से ही सफल कायोत्सर्ग होता है। 6 ।
जो समय पर अपने आवश्यकों का पालन नहीं करते, उनका सारा जीवन अव्यवस्थित हो जाता है।
एक गाँव में किसी के घर नयी बहू आयी थी। वह कम पढ़ी-लिखी थी। एक दिन सासूजी ने कहा- 'बहू! तुम जाकर पड़ोसी के वहाँ सांत्वना दे आओ, उनके यहाँ कोई मर गया है।' बहू पड़ौसी के घर जाकर न रोई, न दुःख व्यक्त किया, मात्र सांत्वना देकर आ गई। सासू ने समझायाबहू! वहाँ तो रोना चाहिए था, आगे से ध्यान रखना।' दो-चार दिन में फिर किसी के घर जाने का अवसर आया तो सासू ने बहू से कहा कि जाओ, उनके यहाँ बधाई देकर आओ। बहू गई और जोर-जोर से रोने लगी और कहा कि आपको बधाई। सारे लोग बहू की अज्ञानता पर हँसने
10_768_n