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उन्हें ये मायामय लोग इस मायामयी दुनियाँ में चतुर न मानेंगे, पर इस मायामय दुनियाँ में अपनी कुछ चतुराई प्रकट करने का फल बड़ा भयानक है । किसी इष्ट का वियोग होने पर यदि कोई ज्ञानीपुरुष उसका दुःख प्रदर्शित न करे, तत्त्वज्ञान का उपयोग करके अपने अंतरंग में प्रसन्न रहे और दुःख भरी बात न करे, तो रिश्तेदारों की निगाह में वह चतुर नहीं माना जाता । चतुर तो तब माना जायेगा, जब थोड़ा रोने लगे और थोड़ी दुःख भरी बातें भी कहने लगे । ये मायामयी पुरुष विरुद्ध आचरण करने में अपनी चतुराई समझते हैं, किन्तु क्या है चतुराई ? क्या है अपने से बाहर से कुछ ? कुछ भी तो अपना अपने से बाहर नहीं है, ऐसा अंतः प्रकाश ज्ञानीपुरुष के ही हुआ करता है।
यह ज्ञानीपुरुष इन प्रवचनों का अर्थात् शास्त्रों का आगमों का अध्ययन करके, चिंतन करके अंतरंग में प्रसन्नता प्राप्त करता है। इन प्रवचनों की भक्ति करने वाले पुरुष के संसार के पुरुषों पर परम करुणा का भाव रहता है। ओह! ये सब जिसका वर्णन जिनप्रवचनों में किया गया है ऐसे इस निज अंतस्तत्त्व का रंच भी मुड़कर दर्शन नहीं करते, इस कारण इतने घोर संकट सह रहे हैं। जिनके इतनी सद्बुद्धि जगे, जो ऐसे करुणा का भाव करते हैं, उन पुरुषों के तीर्थंकरप्रकृति का बंध होता है ।
प्रवचनभक्ति कल्याण के लिए अत्यन्त आवश्यक है। हम सबका कर्तव्य है कि स्वाध्याय की रुचि बनायें । स्वाध्याय के बिना पाप नहीं छूट सकता, कषायों की मंदता नहीं हो सकती। शास्त्रों के भाव को अपने हृदय में धारण किए बिना संसार, शरीर और भोगों से वैराग्य उत्पन्न नहीं हो सकता। शास्त्रों के मर्म को जानकर परमार्थतत्त्व का विचार भली प्रकार कर सकते हैं। ऐसे आगम की उपासना करना और इस आगमज्ञान के देने वाले जिसके समान अपना उपकारी और कोई नहीं है, ऐसे ज्ञानीदाता गुरु के उपकार का लोप न करना और ज्ञानदाता अथवा प्रवचन अर्थात्
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