________________
चक्षुरुन्मीलितं येन, तस्मै श्री गुरवे नमः ।। अज्ञान के कारण अन्धे जीवों के नेत्रों को गुरु ज्ञानरूपी अंजन (सुरमा) की सलाई से खोल देते हैं। शिष्य गुरु के बताये मार्ग पर चलकर ही दिव्यज्योति को प्राप्त करता है। गुरु जैसा विश्व में हितकारी अन्य नहीं है। गुरु की महिमा का वर्णन करते हुये किसी ने लिखा है
सात समन्दर मसि करूँ, लेखन सब वनराय। सब कागज धरती करूँ, गुरु-गुण लिखा न जाय।। देव-शास्त्र-गुरु की जायमाला में भी कहा है- गुरु की महिमा का बखान गोविन्द अथवा वृहस्पति भी करने में समर्थ नहीं हैं, तो मुझ-जैसा तुच्छ बुद्धि वाला कैसे कर सकता है ?
गुरु ही ज्ञान की चिन्तामणि शिष्य को प्रदान करते हैं, जिसके प्रकाश में वह सुपथ व कुपथ की पहचान कर अपना स्व-पर विवेक प्रशस्त करता है। मोक्षमार्ग का ज्ञान गुरु की आराधना-भक्ति के बिना नहीं हो सकता। जैसे एक व्यक्ति था, उसे भोजन बनाने की सारी प्रक्रिया मालूम थी। एक दिन उसे भोजन बनाने की आवश्यकता पड़ गई। भोजन बनाने की उसने समस्त सामग्री एकत्र करके भोजन बनाना प्रारम्भ किया। आटा गूंथकर अच्छी गोल-गोल भी बना ली, रोटी तवे पर डाली कि रोटी चिपक गई और कठिनाई से पलटी गई, टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर गई। दूसरी रोटी को पुनः तवे पर डाला, लेकिन वही स्थिति उसकी भी हुई, इस तरह 5 -6 राटियों की यही दशा हुई। वह आश्चर्य में था कि ऐसा क्यों हुआ, आखिर उसे उस दिन वैसे ही टुकड़ों को खाकर संतोष करना पड़ा।
दूसरे दिन उसे आफिस के कार्य से अपने आफीसर के साथ गाँव से बाहर जाना था। उसने जल्दी से भोजन बनाना प्रारम्भ किया। जैसे ही वह रोटी तवे पर डालने जा रहा था कि अचानक ही उसका दोस्त जो वहीं बैठकर साथ चलने की प्रतीक्षा कर रहा था, बोला- अरे! अभी रोटी
0 7500