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मुनिधर्म का वर्णन है।1।
सूत्रकृतांग के छत्तीस हजार (36,000) पदों में जिनेन्द्र के श्रुत के आराधन करने की विनयक्रिया का वर्णन है ।2 |
स्थानांग के बियालीस हजार (42,000) पदों में छ: द्रव्यों के एक-अनेक स्थानों का वर्णन है। 131 । ___ समवायांग के एक लाख चौंसठ हजार (1,64,000) पदों में जीवादि पदार्थों का द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की समानता की अपेक्षा से वर्णन है |4 |
व्याख्याप्रज्ञप्ति अंग के दो लाख अट्ठाइस हजार 2,28,000 पदों में जीव अस्ति है या नास्ति है, एक है या अनेक है इत्यादि गणधर द्वारा तीर्थंकर के निकट किये गये साठ हजार प्रश्नों का वर्णन है।5।
ज्ञातृधर्मकथा अंग के पांच लाख छप्पन हजार 5,56,000 पदों में गणधर द्वारा किये प्रश्नों के उत्तररूप जीवादि द्रव्यों के स्वभाव का वर्णन है।
उपासकाध्ययनांग के ग्यारह लाख सत्तर हजार (11,70,000) पदों में श्रावक के (ग्यारह प्रतिमा) व्रत, शील, आचार, क्रिया, मंत्रादि का वर्णन है।7।
अंतकृतदशांग के तेईस लाख अट्ठाइस हजार (23,28,000) पदों में एक-एक तीर्थंकर के तीर्थकाल में दश–दश मुनि ने उपसर्ग सहित होकर संसार का अन्त करके निर्वाण प्राप्त किया, उनका वर्णन है।8 | ___ अनुत्तरोपपाद दशांग के बानवै लाख चवालीस हजार 92,44,000 पदों में एक-एक तीर्थंकर के तीर्थकाल में दश–दश मुनि ने भयंकर घोर उपसर्ग सहकर देवों द्वारा पूजित होकर (समाधिमरण करके) विजय आदि अनुत्तर विमानों में उत्पन्न हुए उनका वर्णन है।9।
प्रश्नव्याकरणांग के तेरानवै लाख सोलह हजार (93,16,000) पदों में लाभ, हानि, सुख, दुःख, जीवन, मरण, (हार, जीत, चिन्ता) के संबंध में किये
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