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| बहुश्रुत भक्ति भावना
जिन आगम के ज्ञाता हैं, वे ज्ञान के ही पुंज हैं। विद्यादायक अध्ययन में रत, शान्ति के निकुन्ज हैं।।
ऐसे साधु उपाध्याय की, निशदिन जो भक्ति करते। अतिशय केवलज्ञान का पाकर, शिव सिद्धि मुक्ति वरते।।
जो जिनागम के ज्ञाता हैं, ज्ञान के भंडार हैं, विद्या के देनेवाले हैं, अध्ययन में लीन रहते हैं, शान्ति के आलय हैं, ऐसे साधु उपाध्याय परमेष्ठी की निशदिन जो भक्ति करते हैं, वे केवलज्ञान के दश अतिशय पाकर शिव अर्थात् मोक्ष को प्राप्त करते हैं।
__ जो अंग-पूर्व आदि के ज्ञाता हैं, चारों अनुयोग के पारगामी होकर निरन्तर स्वयं परमागम को पढ़ते हैं और अन्य शिष्यों को पढ़ाते हैं, वे बहुश्रुती हैं। श्रुतज्ञान ही जिनके दिव्य नेत्र हैं, अपना तथा पर का हित करने में ही प्रवर्तते हैं, अपने जिन-सिद्धांतों तथा अन्य एकान्तियों के सिद्धांतों को विस्तार से जानने वाले, स्याद्वादरूप परम विद्या के धारक हैं, उनकी भक्ति करना बहुश्रुतभक्ति है। बहुश्रुती की महिमा कहने को कौन समर्थ है? जो निरन्तर श्रुतज्ञान का दान करते हों, ऐसे उपाध्यायों की जो विनय सहित भक्ति करते हैं, वे शास्त्ररूप समुद्र के पारगामी हो जाते हैं। जितने भी अंग, पूर्व, प्रकीर्णक जिनेन्द्रदेव ने कहे हैं, उन समस्त जिनागमों को जो निरंतर स्वयं पढ़ते हैं तथा अन्य को पढ़ाते हैं, वे बहुश्रुती हैं।
द्वादशांग : प्रथम आचारांग के अठारह हजार (18,000) पदों में
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