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से कुमारावस्था में प्रवेश किया। एक दिन पिताजी किसी कार्य हेतु बाहर गये हुए थे, तब सेठानी ने पुत्र से दुकान पर जाकर बैठने को कहा। बालक मुनीम जी को साथ लेकर दुकान पर जाता है उसे सामने से गुजरते हुए 4-5 व्यक्ति नजर आते हैं। उसमें एक अपराधी है, चार पुलिस वाले उसकी हथकड़ी पकड़े जा रहे हैं। बालक ना-समझ था। उसने प्रथम बार ऐसा दृश्य देखा था। पुण्य के वैभव में पला बालक पाप या अपराध क्या होता है, नहीं जानता है। वह उत्सुकतावश मुनीम जी से पूछता है- मुनीम जी! ये कैसा सुख है ? ऐसा सुख तो मैंने जीवन में कभी नहीं देखा।
सेठ के पुत्र की जिज्ञासा शान्त करने हेतु मुनीम विचार करता है कि इसे भी कुछ सबक सिखाया जाये । वह पुत्र से कहता है- देख, बेटा! तुझे भी यह सुख चाहिये तो एक काम करना, राज्य दरबार में जाना व राजा को प्रणाम करने के बाद राजा के मुकुट में हाथ का एक झटका देकर उसे गिरा देना, बस, तुझे भी ऐसा सुख मिल जायेगा। पुत्र ने मुनीम की बात को सत्य मानकर वैसा ही किया। जब राजा का मुकुट राजा के मस्तक से नीचे गिरा तो उसमें सांप का एक छोटा बच्चा दिखाई दिया, जिसे देखकर राजा का क्रोध हर्ष में परिवर्तित हो गया। राजा सोचने लगा कि इसे कैसे ज्ञात हुआ यह सबकछ? उसने तो आज मेरा जीवन ही बचा लिया । ऐसा सोच राजा ने उसे बहुत-सा धन देकर सम्मान कर विदा कर दिया। पुत्र ने आकर मुनीम जी से कहा, वाह मुनीम जी! आप भी हमें बच्चा समझ बहका देते हो। आपके कहे अनुसार मैंने कार्य किया, फिर भी मुझे वह सुख नहीं मिला। अरे! धन मिला, तो क्या मिला ? यह तो हमारे पिताजी के पास अपार है।
सेठ के पुत्र की ऐसी अजब निराली बात को सुनकर मुनीम ने कहाअच्छा, एक काम करना, एक दिन शनिवार को सायंकाल राजभवन में
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