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अरहन्त भक्ति भावना
ओम ध्वनि जिनकी खिरती है, केवलज्ञान से पूर्ण हैं। दोष अठारह रहित हुये, और किये कर्म को चूर्ण हैं।।
आठ प्रातिहार्यों से शोभित, अनन्तचतुष्टय धारी हैं। ऐसे अरहन्त की पूजा कर, सुख मिलता अति भारी है।।
जिनकी ओम रूपी दिव्यध्वनि खिरती है, जो केवलज्ञान से पूर्ण हैं, जो अठारह दोषों से रहित हैं, चार घातिया कर्मों को नष्ट कर दिया है, जो आठ प्रातिहार्यों से सुशोभित हैं, अनन्तचतुष्टय के धारी हैं, ऐसे अरहन्त भगवान् की मन, वचन, काय द्वारा भक्ति करना, 'अरहन्त भक्ति' है।
जिसने पूर्वजन्म में सोलहकारण भावना भाई थी, वह तीर्थंकर अरहन्त होता है। उनके सोलहकारण भावना से उत्पन्न अद्भुत पुण्य के प्रभाव से स्वर्ग के देव यहाँ आकर गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान तथा मोक्ष कल्याणक मनाते हैं। भगवान् का उपदेश होने के लिऐ देव रत्नमयी समवसरण की रचना करते हैं। पृथ्वी से पाँच हजार धनुष ऊँचा, जिसकी बीस हजार सीढ़ियाँ होती हैं, उसके ऊपर बारह योजन प्रमाण इन्द्रनील मणिमय गोल भूमि, उसके ऊपर अप्रमाण महिमा सहित समक्सरण की रचना होती है। जहाँ समक्सरण की रचना होती है व भगवान् का विहार होता है, वहाँ अंधों को दिखने लगता है, बहरे सुनने लग जाते हैं, लूले चलने लग जाते हैं, गँगे बोलने लग जाते हैं।
पूज्य के गुणों के प्रति विशेष अनुराग होना ‘भक्ति' कहलाती है। कहा है- 'पूज्येषु गुणानुरागो भक्ति।' और भी कहा है
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