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कौन बन सकता है? जो सर्वविश्व की रक्षा का भाव करे, वही तो विश्व का नेता बन सकता है। चाहे कोई जानकर सेवा करे, चाहे किसी से दूसरे की सहज सेवा बन जाय, किन्तु जो सेवक है, उसी को ही स्वामी कहा जा सकता है। जो सेवक नहीं है, वह स्वामी नहीं है। ___ घर में रहने वाला बड़ा बूढ़ा आदमी जो घर का मालिक कहलाता है, घर में 10-5 बच्चा-बच्ची सभी हैं, उनका यह मालिक कहलाता है, स्वामी कहलाता है, तो वह घर का स्वामी यों ही हो गया क्या? घर के उन 10-5 लोगों की सेवा के लिए उनका दिल रखने के लिए अहर्निश परिश्रम करता है वह बड़ा-बूढ़ा। उनकी सेवा करता है, यों कहो। उस सेवा के बदले में वह घर का स्वामी कहलाता है। स्वामी वह होता है जो सेवा करता है। ज्ञानी अन्तरात्मा के विश्व के समस्त प्राणियों की सेवा का भाव रहता है
और भावना ही नहीं, किन्तु उस तरह का आचरण भी होता है कि जिससे विश्व के प्राणियों का कल्याण हो । तो ऐसी वृत्ति में, ऐसे भाव में तीर्थंकर प्रकृति का बंध होता है।
मुनियों के दश भेद होने से वैयावृत्य के भी दश भेद हैं। आचार्य, उपाध्याय, तपस्वी, शैक्ष्य, ग्लान, गण, कुल, संघ, साधु, मनोज्ञ- इन दश प्रकार के मुनियों की परस्पर में वैयावृत्य होती है। काय की चेष्टा द्वारा अन्य द्रव्यों से दुःख/वेदन आदि दूर करने का कार्य- व्यापार करना, वह वैयावृत्य है। ___पँचाचार पालने में तत्पर, शास्त्रों के ज्ञाता, प्रायश्चित देने में कुशल, संघ के नायक, छत्तीस मूलगुणों के धारी मुनिराज को 'आचार्य' कहते हैं। जिनका सामीप्य प्राप्त करके आगम का अध्ययन करते हैं ऐसे व्रत, शील, श्रुत के आधार उपाध्याय हैं। जो महान अनशनादि तप करने वाले हैं, वे तपस्वी हैं। जो निरन्तर श्रुत के शिक्षण में तत्पर तथा व्रतों की भावना में तत्पर रहते हैं, वे 'शैक्ष्य' हैं। रोगादि के द्वारा जिन का शरीर दुःखी हो, वे 'ग्लान' हैं। जो वृद्ध मुनियों की परिपाटी के हों, वे 'गण' हैं। अपने को
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