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बादशाह ने उसको बुलाया। राज्यमाता ने पहिले ही उसको खूब सिखा दिया था। बेटा! बादशाह यों पूछे, तो यों जवाब देना, यों पूछे तो यों जवाब देना, यों पूछे तो यों जवाब देना । राजपुत्र बोला-माँ! यदि बादशाह इनमें से एक भी बात न पूछे, तो क्या जवाब देंगे? राजमाता बोली-बेटा! अब तुम जरूर सभी प्रश्नों का उत्तर दे लोगे, जब तुम इतना तर्क उपस्थित कर सकते हो, तो तुम जरूर उत्तर दे लोगे। बादशाह के यहाँ जब राजपुत्र पहुंचा, तो बादशाह ने कुछ न पूछा, केवल दोनों हाथ राजपुत्र के पकड़ लिए और कहता है कि बोलो, अब तुम क्या कर सकते हो? तो राजपुत्र झठ बोल उठा कि 'अब क्या है, अब तो मैं पूर्ण रक्षित हो गया। विवाह में भांवर के समय पुरुष स्त्री का एक हाथ पकड़ लेता है तो उसे उसकी जीवन भर रक्षा करनी पड़ती है। मेरे तो दोनों ही हाथ आपने पकड़ लिए, अब मुझे क्या डर है, मैं तो पूर्ण रक्षित हो गया। तो जिस ज्ञानी पुरुष में स्वयमेव ही कला प्रकट हुई, उसे अब व्यवहार की कलाओं को क्या समझाना है? ऐसे पुरुष दूसरे धर्मात्मा पुरुषों की योग्य वैयावृत्य करते हैं।
एक ऐसा कथानक है कि गौतम ऋषि ने एक बार बाण से बिंधे हुए पक्षी को अपनी गोद में पाया तो वह शिकारी आकर लड़ने लगा कि यह मेरा शिकार है, इसे तुम मुझे दे दो। तो गौतम बोले कि यह हंस तुम्हारा नहीं है, हमारा है। शिकारी बोला कि तुम्हारा कैसे है? हमने ही तो इसका शिकार किया है, हमारे ही द्वारा मारा हुआ बाण इसके बिंधा है। तो हमारा ही तो हुआ, तुम्हारा कैसे हुआ? गौतम बोले कि इस हंस का मालिक इसका मारनेवाला है या इसकी रक्षा करने वाला है? न्याय हेतु केस राजा के पास गया। वहाँ बात आयी कि इस हंस का मालिक कौन है? जो प्राण ले वह मालिक है या जो प्राणों की रक्षा करे वह मालिक है? आप सब भी अपने-अपने अनुभव से बतावो। जो प्राणी की रक्षा करे वह मालिक है। जो प्राण ले, वह मालिक नहीं है। तो यों ही जानो कि इस विश्व का नेता
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