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स्वरूप परिचय से, स्वतंत्रता के निर्णय से बिल्कुल स्वच्छ बना डालें, जिस उपयोग में कषायों का रंग न जमें, जिस उपयोग में गर्व न ठहरे, विपरीत आशय न आये, परके प्रति ममता न जगे । बिल्कुल स्वच्छ उपयोग बना दिया जाय, तो फिर थोड़ा भी कष्ट आप करोगे, धर्मपालन की चेष्टा करोगे, प्रवृत्ति करोगे, तो वे सब कई गुणा फल देंगे। एक उपयोग को स्वच्छ बनाये बिना धर्मपालन का भी फल न मिलेगा और व्यर्थ में समय भी गँवा दिया जायेगा। वह मात्र थोड़ा पुण्य का कार्य रह जायेगा । लोग सोचते हैं कि हम जितनी चालाकी से चलेंगे, जितना हम दूसरों की आँख में धूल डालेंगे, उतना ही अधिक अपने वैभव का कार्य साध लेंगे। सच पूछो तो वह पुरुष उतना ही अधिक टोटे में रहता है। कारण यह है कि जब मूल में भावना ही अशुद्ध है तो उस अशुद्ध भावना के निमित्त से पापकर्म का बंध होगा। पुराने पाप उदीरणा में आकर सामने आयेंगे। पुण्य का रस घट जायेगा। क्या तत्त्व पाया?
शुद्ध स्वच्छ उपयोग रहे तो धर्मरस की प्राप्ति होगी। अपने उपयोग को स्वच्छ, शुद्ध, सत्य, प्रमाणिक बनायें तो उससे हित की सिद्धि है। ये सब तप हैं। उपसर्गों से विचलित न होना, अपने मोक्षमार्ग के उद्देश्य में दृढ़ रहना, उपद्रवों का सामना कर सकना और जान बूझकर भी अनेक कायक्लेश करना, ये सब हैं शक्तितस्तप ।
एक बार अकबर ने बीरबल से कहा- बीरबल ! तुम्हें काला कोयला सफेद कर दिखाना है । बीरबल तो जरा सकते में आ गये। कोयला और सफेद ? असंभव - सी बात लगी । वह सोचते रहे कि यह काला-कलूटा कोयले सफेद कैसे होगा? बीरबल बोले- हुजूर! कुछ समय दिया जाय, फिर कोयला को सफेद करके दिखाऊँगा । बीरबल के निवेदन पर उन्हें एक सप्ताह का समय दे दिया गया। सभी सोचने लगे कि बीरबल शायद पानी व साबुन से कोयला सफेद करेंगे। सातवें दिन बीरबल दरबार में
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