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भिन्न-भिन्न देशों के दो चित्रकार थे। जैसे नाम ही रख लो कोई एक जापान का एक जर्मन का। दोनों चित्रकारों ने राजा से कहा कि हम
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लोग बड़े सुन्दर चित्र बनाते हैं । आप अपने किसी महल में या हाल में बनवाकर हमारी चित्रकला देखें । तो राजा ने एक बड़े हाल में चित्रकारी के लिए दोनों को कहा और यह भी कहा कि जिसका चित्र बहुत अच्छा होगा उसको खूब पारितोषिक मिलेगा। एक भींत जापानी चित्रकार को दी और एक भींत जर्मनी चित्रकार को दी। उन दोनों के बीच में एक काठ का पर्दा लगा दिया जिससे वे चित्रकार एक दूसरे की कला को न देख सकें । अब मानों जापानी चित्रकार ने रंग-बिरंगे बहुत से बाह्य साधन जुटाये और छह महीनों तक बहुत - बहुत सुन्दर - सुन्दर चित्रों को रंगना प्रारम्भ कर दिया और इस जर्मनी चित्रकार ने साफ करने वाले मसाले, जैसे पहिले कौड़ी का चूना होता था, उससे भींत को खूब रगड़ना शुरू किया। वह 6 माह तक भींत को रगड़ता ही रहा और भींत को साफ उजला स्वच्छ चमकदार बना दिया । जब 6 माह व्यतीत हो गये तो राजा ने कहा कि अब हम तुम दोनों के चित्रों को देखेंगे। ठीक है महाराज ! चित्रों को देखिये और उनका मुकाबला करिये कि कौन - सा चित्र उत्तम है । बीच का पर्दा हटवा दिया गया। अब राजा चित्र देखने लगा तो जिस भींत पर चित्र लिखे गये थे, रंगे गये थे, उसे देखा तो ऐसे ही रूखे, कांतिहीन सब चित्र नजर आये। जब उस दूसरी भींत पर नजर डाली तो वह भींत चमकीली थी, उसमें उस पहली भींत के सारे चित्र प्रतिबिम्बित हो गये । राजा उसको देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ और उस चित्र बनाने वाले को बहुत-सा पुरस्कार दिया ।
यों ही समझो भैया! कि इस जीवन में हम धर्म की चित्रकारी कर रहे हैं, वर्षों हो गये, करते जा रहे हैं, पर इस चित्रकारी में सर्वप्रथम यह ध्यान देना चाहिए कि हम अपनी आत्मा को शुद्धभावना से, ज्ञानभावना से,
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