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खिलावें, मिठाइयाँ भी खूब खिलावें, सब कुछ करते, मगर अंत में खाँसी में आकर, बीमारियाँ आकर दुःखी बन जाते हैं। इस शरीर से इतना प्रेम करते और यही दुखों का कारण बनता है। इस शरीर पर भी क्या कोई अपना अधिकार है? नहीं। कोई नहीं चाहता कि बाल सफेद हो जायें, शरीर में झुर्रियाँ पड़ जायें। खिजाव लगा कर बालों को काला करते हैं। कुछ भी करें, पर इस शरीर पर अपना कोई अधिकार नहीं है। संसार, शरीर व भोगों की आसक्ति ही दुःख का कारण है।
जंगल में एक नग्न दिगम्बर साधु महाराज ध्यानस्थ थे। गर्मी के दिन थे। वहाँ से एक राजा निकला। उस साधु की तकलीफ को देखकर राजा वहीं बैठ गया। जब साधु का ध्यान टूटा, तो राजा बोला- महाराज! आप इस प्रकार की धूप इस प्रकार से क्यों परेशान हो रहे हैं? आपके पास यहाँ खाने-पीने का भी प्रबन्ध नहीं। आपको धूप भी बहुत लग रही होगी। कम-से-कम एक छतरी तो आपको दे ही दूँ जिससे आप ऊपर की धूप तो बचा सकेंगे। साधु बोला- ऊपर की धूप बच जायगी, पर नीचे की तपन कैसे मिटेगी? राजा बोला- महाराज! जूते बनवा दूंगा। साधु ने कहा- भाई! नीचे से जूते, ऊपर से छाता और शरीर नंगा, यह भी तो ठीक नहीं है। राजा बोला- महाराज! मैं वस्त्र बनवा दूंगा, सुन्दर वस्त्र मँगा दूँगा। साधु बोला- जब मैं वस्त्र पहनकर रहूँगा, वेशभूषा में रहूँगा तो फिर मुझे कौन पूछेगा? तब राजा बोला- महाराज! तीन चार गाँव मैं लगा दूंगा, जिससे खूब खाना-पीना और आराम से रहना। साधु ने कहाअच्छी बात है। साधु ने कहा- फिर खाना कौन बनायेगा? राजा ने कहामहाराज! आप चिंता न करें, दुःख न उठावें, मैं आपकी शादी करा दूंगा तथा घूमने के लिये एक मोटर दे दूंगा, सब ठीक हो जायगा। साधु ने कहा- महाराज! मोटर दे दोगे, तो मोटर का खर्च कैसे चलेगा? राजा ने कहा- महाराज! मोटर के खर्च के लिए मैं 5 गाँव लगा दूँगा। साधु ने
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