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| अभीक्षण ज्ञानोपयोग भावना
आलस तज कर, मन प्रसन्न कर, जो जिन आगम पढ़ते हैं। लोकालोक का ज्ञान करें, और आगम हिय में धरते हैं।।
केवलज्ञान की प्राप्ति हेतु, करते ज्ञानाभ्यास हैं। दिव्यध्वनि प्रकटाने का तो, यही सफल प्रयास है।। जो आलस्य को छोड़कर, मन को प्रसन्न करके, जिनेन्द्रदेव कथित आगम को पढ़ते हैं, वे लोक-अलोक का ज्ञान प्राप्त करते हैं और आगम को अपने हृदय में धारण करते हैं। केवलज्ञान की प्राप्ति हेतु पुण्यात्मा प्रतिक्षण ज्ञान का अभ्यास करते हैं। क्योंकि अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग ही दिव्य ध्वनि प्रकटाने का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है।
हे आत्मन्! यह मनुष्यजन्म पाकर निरन्तर ज्ञानाभ्यास ही करो। ज्ञान का अभ्यास किये बिना एक क्षण भी व्यतीत नहीं करो। ज्ञान के अभ्यास के बिना मनुष्य पशु के समान है। अतः योग्य काल में जिनागम का पाठ करो। जब समभाव हो, तब ध्यान करो। शास्त्रों के अर्थ का चिंतन करो। बहुत ज्ञानी गुरुजनों में नम्रता-वंदना-विनयादि करो। धर्म के सुनने के इच्छुक को धर्म का उपदेश दो। इसी को अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग कहते हैं।
ज्ञानोपयोग द्वारा ज्ञान का अभ्यास करने से विषयों की वांछा नष्ट हो जाती है, कषायों का अभाव हो जाता है। माया, मिथ्यात्व, निदान- इन तीन शल्यों का ज्ञानाभ्यास से नाश हो जाता है। ज्ञान के अभ्यास से ही मन स्थिर होता है, अनेक प्रकार के विकल्प नष्ट हो जाते हैं।
ज्ञानाभ्यास से ही धर्म्यध्यान में, शुक्लध्यान में अचल होकर बैठा
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