________________
हैं।' हँसी तो होगी ही, और जब तुम्हारी कोई हँसी करेगा तो क्रोध आयेगा।
कठिन वचन मत बोल। हँसी-हँसी में भी अपने मित्र को कठिन वचन मत बोलो। बहुत अन्याय हो सकता है। द्रोपदी के दो शब्दों ने इतना अन्याय कर दिया। दुर्योधन कहता है- बता दूंगा तुम्हें कि अन्धों के पुत्र अन्धे कैसे होते हैं। एक कठिन वचन ने भरी सभा में चीर-हरण की नौबत ला दी। दुर्योधन कहता है कि द्रोपदी! हम लोग अन्धे हैं, अन्धों के पुत्र अन्धे होते हैं। अन्धों के सामने नग्न होकर भी चली जाओ तो क्या फर्क पड़नेवाला है। एक वाक्य से एक स्त्री के सतीत्व के लुटने की नौबत आ गयी थी। एक वाक्य ने महाभारत जैसा युद्ध खड़ा कर दिया था। कितना संग्राम हुआ, कितना खून-खच्चर हुआ?
सारा झगड़ा महाभारत में मात्र बातों-बातों का है। महाभारत को खोजो तो कोई सार नहीं। प्याज की पर्ते हैं महाभारत में | राम और रावण युद्ध तो फिर भी ठीक प्रतीत होता है, लेकिन महाभारत में केवल प्याज की पर्ते लगी हैं। छिलके निकालते जाओ, निकालते जाओ, अन्त तक छिलके निकलते जायेंगे, कोई सार नहीं। बातों-बातों का युद्ध है। उसने कहा कि मुझे अन्धा क्यों कहा? उसने कहा कि मुझे नग्न होने को क्यों कहा?
सदा विनयपूर्ण वचन बोलना चाहिये। कभी किसी का अपमान नहीं करना चाहिए। मीठे वचन बोलना, यथायोग्य आदर-सत्कार करना- ये ही विनय है। महापापी, द्रोही, दुराचारी को भी कुवचन नहीं कहना चाहिए।
जब तक नम्रता नहीं आयेगी, तब तक शान्ति और सन्तोष का मार्ग नहीं मिल सकेगा। अभिमानी पुरुष का आत्मप्रभु से मिलन नहीं हो पाता। अतः कभी भी गर्व (घमण्ड) नहीं करना चाहिये। भैया! किस पर गर्व करना? कौन-सा यहाँ सारभूत है, कौन शरण है ? स्वप्नवत् यह असार
10 660_n