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सिपाही को और कैदी सज्जन को मरे व्यक्ति की लाश उठाकर लाने के लिये भेजा। दोनों उस आदमी के साथ वहाँ गये, जहाँ लाश पड़ी थी । खाट पर लाश के ऊपर कपड़ा बिछा था । खून बिखरा पड़ा था। दोनों ने उस खाट को उठाया और उठाकर ले चले। साथ का दूसरा आदमी खबर देने के बहाने दौड़कर आगे चला गया। तब चलते-चलते सिपाही ने कैदी से कहा- 'देख, उस दिन तू मेरी बात मान लेता तो सोना मिल जाता और फाँसी भी नहीं होती। अब देख लिया सच्चाई का फल?' कैदी ने कहा- 'मैंने तो अपना काम सच्चाई का ही किया था, फाँसी हो गयी तो हो गयी। हत्या की तूने और दण्ड भोगना पड़ा मेरे को । भगवान् के यहाँ न्याय नहीं है।
खाट पर झूठमूठ मरे हुए के समान पड़ा हुआ आदमी उन दोनों की बातें सुन रहा था। जब जज के सामने खाट रखी गयी तो खूनभरे कपड़े को हटाकर वह उठ खड़ा हुआ और उसने सारी बात जज को बता दी कि रास्ते में सिपाही यह बोला और कैदी यह बोला । यह सुनकर जज को बड़ा आश्चर्य हुआ । सिपाही भी हक्का-बक्का रह गया। सिपाही को पकड़कर कैद कर लिया गया। परन्तु जज के मन में सन्तोष नहीं हुआ । उसने कैदी को एकान्त में बुलाकर कहा कि ‘इस मामले में तो मैं तुम्हें निर्दोष मानता हूँ, पर सच-सच बताओ कि इस जन्म में तुमने कोई हत्या की है क्या?' वह बोला - बहुत पहले की घटना है। एक दुष्ट था, जो छिपकर मेरे घर मेरी स्त्री के पास आया करता था। मैंने अपनी स्त्री को तथा उसको अलग-अलग खूब समझाया, पर वह माना नहीं । एक रात वह घर पर था और अचानक मैं आ गया। मेरे को गुस्सा आया हुआ था । मैंने तलवार से उसका गला काट दिया और घर के पीछे जो नदी है, उसमें फेंक दिया। इस घटना का किसी को पता नहीं लगा। यह सुनकर जज बोला'तुम्हारे को इस समय फाँसी होगी ही; मैंने भी सोचा कि मैंने किसी से घूस (रिश्वत) नहीं खाई, कभी बेईमानी नहीं की, फिर मेरे हाथ से इसके लिये फाँसी का हुक्म लिखा कैसे गया? अब सन्तोष हुआ । उसी पाप का फल तुम्हें यह भोगना पड़ेगा। सिपाही को अलग फाँसी होगी।' सभी को शुभाशुभ कर्मों का फल तो भोगना ही पड़ता है, चाहे इस जन्म में भोगना पड़े या जन्मान्तर में ।
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