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सुनार का घर था। सुनार के पास सोना आता रहता था और वह गढ़कर देता रहता था। ऐसे वह पैसे कमाता था। एक दिन उसके पास अधिक सोना जमा हो गया। रात्रि में पहरा लगाने वाले सिपाही को इस बात का पता लग गया। उसने सुनार को मार दिया और जिस बक्से में सोना रखा था उसे लेकर भागने लगा। उसी समय सामने रहनेवाले सज्जन लघुशङ्का के लिये उठकर बाहर आये। उन्होंने पहरेदार को पकड़ लिया कि तू इस बक्से को कैसे ले जा रहा है? तो पहरेदार ने कहा- 'तू चुप रह, हल्ला मत कर। इसमें से कुछ तू ले-ले और कुछ मैं ले लूँ।' सज्जन बोले-'मैं कैसे ले लूँ? मैं चोर थोड़े ही हूँ!' पहरेदार ने कहा- 'देख, तू समझ जा, मेरी बात मान ले, नहीं तो दुःख पायेगा।' पर वे सज्जन माने नहीं। तब पहरेदार ने बक्सा नीचे रख दिया और उस सज्जन को पकड़कर जोर से सीटी बजा दी। सीटी सुनते ही और जगह पहरा लगानेवाले सिपाही दौड़कर वहाँ आ गये। उसने सबसे कहा कि 'यह इस घर से बक्सा लेकर आया है और मैंने इसको पकड़ लिया है।' तब सिपाहियों ने घर में घुसकर देखा कि सुनार मरा पड़ा है। उन्होंने उस सज्जन को पकड़ लिया और राजकीय आदमियों के हवाले कर दिया। जज के सामने बहस हुई तो उस सज्जन ने कहा कि 'मैंने नहीं मारा है, उस पहरेदार सिपाही ने मारा है।' सब सिपाही आपस में मिले हुए थे, उन्होंने कहा कि 'नहीं, इसी ने मारा है, हमने खुद रात्रि में इसे पकड़ा है, इत्यादि।
___ मुकदमा चला। चलते-चलते अन्त में उस सज्जन के लिये फाँसी का हुक्म हुआ। फाँसी का हुक्म होते ही उस सज्जन के मुख से निकला-'देखो, सरासर अन्याय हो रहा है। भगवान् के दरबार में कोई न्याय नहीं। मैंने मारा नहीं, मुझे दण्ड हो और जिसने मारा है, वह बेदाग छूट जाय, जुर्माना भी नहीं; यह अन्याय है।' जज पर उसके वचनों का असर पड़ा कि वास्तव में यह सच बोल रहा है, उसकी किसी तरह से जाँच होनी चाहिये। ऐसा विचार करके उस जज ने एक षड्यंत्र रचा।
सुबह होते ही एक आदमी रोता-चिल्लाता हुआ आया और बोला- 'हमारे भाई की हत्या हो गयी, सरकार! इसकी जाँच होनी चाहिये।' तब जज ने उसी
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