________________
महाबन्ध हैं। राग, द्वेष, भय, संताप, शोक, क्लेश, बैर, हानि महाआरम्भ के कारण हैं, मद उत्पन्न करने वाले हैं और दुःख रूपीदुर्गति के बीज हैं। किस बात का अभिमान करना ? ये ऋद्धियाँ, ये सिऋियाँ आत्मवैभव के सामने न-कुछ चीजें हैं। ज्ञानीपुरुष अनेक ऋद्धियों से सम्पन्न होकर भी किसी भी ऋिद्धि पर, किसी भी सिऋि पर अहंकार नहीं करता। 7. तपमद- ज्ञानीपुरुष तप का मद नहीं करता। किन्ही अज्ञानियों की ऐसी प्रकृति रहती है कि धर्म का, संयम का, व्रत का, तप का थोड़ा भी काम करें तो उसको दिखावा का रूप देता है। अरे! किसके लिये शान बघारते हो? कौन तुम्हारा सहाय है ? धर्म तो चुपके से करने का काम है, गुप्त ही करने का काम है। जो दूसरे जीवों को अपने बारे में कुछ प्रदर्शित कर देना चाहते हैं, वे तो मोही पुरुष हैं। तुम्हारा यहाँ कौन शरण है जिसको तुम अपनी कला बताना चाहते हो ? ।
सम्यक्त्व के बिना मिथ्यादृष्टि का तप निष्फल है। संयम व तप तो आत्मकल्याण करने के साधन हैं पर आज तो लोगों को तप का भी अभिमान हो जाता है। अपने अन्दर कुछ तपश्चरण की शक्ति होने पर यह कहना कि मेरे समान तपस्वी कोई नहीं है, मैं महीनों महीनों का उपवास कर लेता हूँ, मैं छहों रसों का त्यागी हूँ, मैं गर्मी में धूप में बैठकर घंटों ध्यान लगाता हूँ, मैं यह करता हूँ, मैं वह करता हूँ। यह सब तप का अभिमान है जो सब किये-कराये पर पानी फेर देता है। जो सच्चे तपस्वी होते हैं, वे कभी भी तप का मद नहीं करते। विष्णुकुमार मुनिराज को ऋद्धि होते हुये भी उन्हें उसका पता तक नहीं था। असंयमी सम्यग्दृष्टि भी मद नहीं करता। 'त्रिमूढा पोढमष्टांगम् सम्यग्दर्शनमस्मयम् ।' सम्यग्दर्शन में मद नहीं होता। अतः कभी भी तप का अभिमान नहीं करना चाहिये। 8. रूपमद – सम्यग्दृष्टि को शरीर के रूप का गर्व नहीं होता, क्योंकि वह अपना रूप तो ज्ञानमय जानता देखता है, जिसमें सभी पदार्थों का
10
638_n