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कर वहाँ से चलता बना। कुम्हार चुपचाप यह दृश्य देखता रहा और मन-ही-मन प्रसन्न होने लगा और कहने लगा-अरे! यह गधा बड़ा प्यारा है। जीते जी भी मुझे कुछ रुपयों की जुगाड़ करा देता था, मरने के बाद भी आज दो रुपये का जुगाड़ करवा दिया। धन्य है गधा और वह खुशी से उछल पड़ा कि चलो, रोजी-रोटी का मामला जम गया और वह प्रतिदिन अगरबत्ती, धूप, फल-फूल चढ़ाकर बैठ जाता। कुछ समय के बाद वहाँ से दूसरा पथिक निकला। देखा, कुम्हार बैठा है, दीप-धूप जल रहे हैं, फूल-पैसे भी चढ़े हुए हैं। क्या बात है ? यहाँ कौन-से देवता विराजमान हैं ? कुम्हार कहता है-यहाँ पहुँचे हुए देवता श्री गर्दभसेन महाराज की समाधि है। ये बड़े चमत्कारी बाबा हैं। ‘अच्छा! क्या चमत्कार है यहाँ?' अरे साहब! यहाँ बेरोजगारों को रोजगार मिल जाता है, मन्नतें माँगने से गुमी (खोई हुई) चीजें मिल जाती हैं, भेंट देने से बीमारी चली जाती है, गहना चढ़ाने से कन्या का विवाह शीघ्र हो जाता है, अच्छा तो इतना बडा चमत्कार है इसका? तो भाई! मेरी भी गायें खो गई हैं, क्या मिल जायेंगी? हाँ, प्रसाद चढ़ाओ, मनौती माँगो, फिर देखो चमत्कार | उसने उसी समय फल-फूल, प्रसाद-पैसे चढ़ाई, मनौती माँगी और आगे बढ़ा। इत्तफाक से कुछ दूर जंगल में ही गायें चरती हुई दिखाई पड़ी। जैसे ही गायें मिली, वह तो गर्दभसेन महाराज की जयकार लगाते हुए वहाँ पहुँचा। छप्पर बनवा दिया, प्रतिदिन किलो भर दूध का चढ़ावा देने लगा और नगर में ढिंढोरा पीट दिया कि रास्ते में गर्दभसेन महाराज का चबूतरा है, जो भी वहाँ मन्नतें माँगेगा, वह अवश्य ही पूरी होगी। बस, क्या था, दुःखी भक्तों की भीड़ लग गई, खूब चढ़ावा आने लगा। कुम्हार का गधा 'गर्दभसेन महाराज' बन गया और कुम्हार उसका परम भक्त पुजारी बन गया। उसके ठाठ रहने लगे। उसने काम करना छोड़ दिया।
कुछ दिनों बाद उसे खुद भी विश्वास होने लग गया कि गर्दभसेन
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