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________________ कहता है-"अभी आप आँखें मत खोलना, नहीं तो सब करी-कराई मेहनत पर पानी फिर जायेगा। मैंने जिन्द को इस मटके में बन्द कर लिया है। इसे इतनी दूर छोड़कर आऊँगा, ताकि फिर यह कभी भी यहाँ पर न आवे।" यह कहकर वह पंडित चलता बना। वे सब लोग आँखें ही बन्द किये रहे। जब बहुत देर हो गई पंडित लौटकर नहीं आया, तब उन्होने अपनी आँखें खोली और घर में जाकर देखा तो सब बिखरा पड़ा था। जब उस व्यक्ति ने जाकर ने सन्दूक में अपनी जिन्दगी भर की कमाई देखी, तो वहाँ फूटी कौंड़ी भी नहीं थी। वह माथे पर हाथ लगाकर रोने लगा और कहने लगा, 'अरे! मैं लुट गया-मैं लुट गया।' अब पछताये होत क्या, जब चिडिया चग गई खेत ? मूढ़तायें ही हैं। ऐसी अनेक लौकिक कथायें हैं जिनमें दिखता है कि लोगों में कितनी मूढ़तायें भरी हुई हैं। कहीं पेड़ पर धज्जी बाँधते हैं, जहाँ कहीं चार-छ: धज्जियाँ बँधी हैं तो लोग सोचते हैं कि यह देव इस धज्जी में ही बँधा हआ है। धज्जी मायने फटा कपडा वह फटा कपडा कहीं बाँध दिया, तो धज्जी देवता हो गये। यह त्रिशूल की पूजा कबसे चली है? एक पौराणिक घटना है कि कुछ चोर लोग चोरी करने जा रहे थे, तो रास्ते में कोई साधु ध्यान लगाये बैठा था। तो वहाँ यह बोली करके गये कि हमें यदि चोरी में खूब लाभ होगा तो आधी भेंट आपको चढ़ायेंगे। इतने में कोई सिंह वगैरह क्रूर जानवर आया और उसने साधु का भक्षण कर लिया। अब वहाँ कुछ न रहा, केवल साधु का त्रिशूल रह गया। जब चोर लोग चोरी करके आये तो देखा कि साधु गायब, अब धन किसे दें ? तो वहाँ तीन अंगुली पड़ी थीं उसी को आधा धन चढ़ा दिया। लो, तबसे त्रिशूल की पूज्यता हो गयी। लोकमूढ़ता में धर्म नहीं है। लोक की परम्परा से जो चलता आया है तो मान लिया, लेकिन वह धर्म नहीं है। कहते हैं कि कोई साधु महाराज 10 626_n
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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