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करने के लिये रात्रि में विद्या द्वारा एक देवी को साधा है। पर्दे के पीछे से संघश्री नहीं बोल रहे थे, अपितु उनके स्थान पर इस मटके में स्थित देवी जवाब दे रही थी, परन्तु जिनशासन के प्रभाव से जिनधर्म की भक्त देवी ने रात्रि में आकर मुझे यह बात बता दी थी, अतः आज संघश्री से एक बात पुनः दूसरी बार पूछी, परन्तु देव एक ही बात दूसरी बार नहीं बोलते हैं, इसलिए ये संघश्री का भेद खुल गया है।
राजा ने कहा- अरे रे रे! धर्म के नाम पर इतना कपट । अकलंक कुमार मैं आपकी विजय की घोषणा करता हूँ। आपके विद्वत्ता भरे न्याय-वचन सुनकर मुझे बहुत ही आनन्द हुआ है। अनेक युक्तियों द्वारा आपने अनेकान्तमय जिनधर्म को सिद्ध किया है। उससे मैं प्रभावित होकर जिनधर्म को स्वीकार करता हूँ और जिनेन्द्र भगवान् की रथयात्रा में मैं ही भगवान् के रथ का सारथी बनूँगा। मंत्री जी! जिनेन्द्र भगवान् की रथयात्रा की तैयारी धूम-धाम से करो। बहुत से एकान्तवादियों ने कहा हमारे आचार्य ने जो अयोग्य कार्य किया है, उससे हमें दुःख हो रहा है। यह वाद-विवाद सुनकर हम भी जिनधर्म से प्रभावित हुये हैं, इसलिये एकान्त धर्म को छोड़कर हम भी जैनधर्म अंगीकार करते हैं। हाथी घोड़े आदि वैभव के साथ जिनेन्द्र भगवान् की भव्य रथयात्रा निकाली गयी, जिसे देखकर नगर के लाखों लोग प्रभावित हुये तथा जिनधर्म की महान प्रभावना हुई।
सम्यग्दृष्टि इस प्रकार अपने ज्ञान, वैभव, तप व अनेक महोत्सवों द्वारा धर्म की प्रभावना करता है। यह सम्यग्दृष्टि का प्रभावना अंग है।
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