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यही संकल्प लेकर सीता की रक्षा करने रावण से जूझ पड़ा। घायल अवस्था में भी उसने राम को सीता के अपहरण की कहानी सुनाई। एक पक्षी भी धर्मप्रभावना कर सकता है, तो क्या हम मनुष्य होकर धर्म की प्रभावना नहीं कर सकते? अवश्य कर सकते हैं।
अकलंक और निकलंक मान्यवरवेट नगरी के राजमंत्री के पुत्र थे। निकलंक ने धर्म की रक्षा के लिये अपना बलिदान दे दिया था और अकलंक ने एकान्तवादियों को वाद-विवाद में हराकर जैनधर्म की महान प्रभावना की थी।
उज्जैन के राजा हिमशीतल की दो रानियाँ थीं। उनमें से एक जैनधर्म की अनुयायी थी और दूसरी बौद्धधर्म की अनुयायी थी। एक बार पहले किसका रथ निकले इस पर विवाद हो गया। तब राजा ने कहा- जैनों
और बौद्धों का राज्यसभा में वाद-विवाद हो और उसमें जो जीत जाये, उसकी रथयात्रा पहले निकाली जायेगी। ____बौद्धों की ओर से संघश्री तथा जैनों की ओर से अकलंक के बीच वाद-विवाद हुआ। जब संघश्री हारने लगे, तो उन्होंने कहा 'महाराज! मेरे सिर में चक्कर आ रहे हैं, इसलिए यह वाद-विवाद कल के लिये रखा जाये।
दूसरे दिन संघश्री ने एक पर्दे के पीछे बैठकर वाद-विवाद किया। अकलंक ने प्रश्न किया और संघश्री ने उसका जवाब दिया।
अकलंक ने पुनः कहा- संघश्री! आपने जो कहा है, उसे ये उपस्थित नागरिक साफ-साफ नहीं सुन सके हैं, अतः इसी बात को पुनः कहिये। परन्तु अन्दर से किसी के बोलने की आवाज नहीं आई। तब अकलंक ने पर्दे को हटाकर मटका हाथ में उठाकर कहा- कल वाद-विवाद में संघ श्री जवाब न दे सके थे, इसलिये परेशान होकर सिर में चक्कर आने का झूठा बहाना बनाया था और फिर उन्होंने किसी भी प्रकार से विजय प्राप्त
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