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से ही कार्ड डाल दिया और कह दिया कि शादी में बुलाया है। तिरस्कार का उत्तर भी तिरस्कार से मिला। उसने ऊपर से ही कहा- “फुरसत नहीं है।"
दादाजी ने पूछा- "कौन गया था? क्या कहा उसने?" छोटे ने बताया- वह नहीं आयेगा। उसके मन में पाप है, कैसे आयेगा?
दादाजी- "उससे बात हुई? क्या उसने खुद कहा?" छोटा- “नहीं, बात नहीं हुई। मैं तो दरवाजे पर कार्ड डाल आया
दादा ने उसे समझाया- "बेटा! कभी भी किसी को बुलाओ, तो मान सम्मान के साथ बुलाना चाहिए। उपेक्षा से, तिरस्कार से नहीं। ठीक है, मैं ही जाता हूँ।"
सारा परिवार स्तब्ध रह गया। 75 वर्ष के बुजुर्ग, सात प्रतिमा के धारी, उस कुलकलंकी को बुलाने एक वेश्या के यहाँ जा रहे हैं, पर उनके अंतस् में वात्सल्य भाव भरा था। उस लड़के को पता चला कि दादाजी उसे बुलाने आ रहे हैं, घबरा गया। दरवाजे पर भागा आया, दादा को सामने देख उनके चरणों में गिर पड़ा। आँखों से अश्रुधार बह चली। दादाजी! आप मुझ अधम के लिये यहाँ क्यों आये? मैं पापी, आपकी मर्यादा और प्रतिष्ठा धूल में मिलाता रहा। अरे, मैं नहीं आता तो क्या अंतर पड़ता था? आज आपके इन पावन चरणों में संकल्प लेता हूँ, सारे व्यसन त्याग कर आपकी बताई राह पर चलूँगा। _इतना सुनना था कि दादाजी ने उसे अपने हृदय से लगा लिया और कहा- "बेटा, सुबह का भूला यदि शाम को घर लौट आता है, तो वह भूला नहीं कहलाता।" जिनागम तो कहता है कि आज जो हीन है, वह कल महान बन सकता है। जो कभी नारकी हुआ है, उन्होंने ही नर से नारायण बनने का मार्ग खोला है। वे नारायण भगवान् हुये हैं। इतिहास गवाह है
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