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उठाने का ही प्रयास करता है।
पथ से शिथिलता के कई कारण उत्पन्न हो सकते हैं, कोई परिस्थिति आ सकती है। बीमारी हो, ज्ञान का अभाव हो, मौसम प्रतिकूल हो, चर्या सही नहीं हो पा रही हो तो सहयोग देकर कर्त्तव्य का पालन करते हुये कारण जानकर पूर्ण सहारा देना चाहिये, लेकिन दुष्प्रचार-प्रसार करते हुये अस्थितिकरण करने की कोशिश नहीं करनी चाहिये । समस्या को समझकर ही समाधन करना चाहिये, किसी दूसरे से किसी के बार में कुछ सुनकर टीका–टिप्पणी पर एकदम से उतारू नहीं होना चाहिये, शान्तिपूर्वक समझाना चाहिये।
खजुराहो में एक बार कोई मुनिराज आये थे । उनकी चर्या से वहाँ के लोग असंतुष्ट थे। वहाँ उन्हें कपड़े पहनाने की तैयारी हो गई । कटनी पंडित जगन्मोहन लाल जी उन दिनों सतना में थे। उन्हें सूचना मिली कि खजुराहो में इस समय एक पंडित की बड़ी आवश्यकता है।
जगन्मोहन जी तुरन्त खजुराहो रवाना हो गये । वहाँ उन्होंने वस्तुस्थिति का पता किया। बताया गया कि महाराज जी दिन भर अपने शरीर पर पानी डालते रहते हैं, बार-बार घास पर लेट जाते हैं, रात्रि में इधरउधर चहल-कदमी करते हैं। पंडित जी ने लोगों को समझाया, 'देखो भाई! कपड़ा पहनना पहनाना तो सरल है, किन्तु कपड़ा उतारना बहुत कठिन है। कई भवों के पुरुषार्थ का फल मिलता है, तब कहीं मुनि अवस्था धारण कर पाते हैं । इतना बड़ा फैसला करने के पहले क्या आपने महाराज जी से कुछ चर्चा की?' सभी ने कहा- "नहीं ।"
सभी के "नहीं" कहने पर उन्होंने सब को रोका। स्वयं महाराज जी के पास गए और विनयपूर्वक नमस्कार कर उनसे पूछा - "महाराज जी आपने कितने सौभाग्य से यह मुनिपद धारण किया है । महाव्रतों का पालन तो अत्यंत दुर्लभ है । अनेक जन्मों के पुण्य और पुरुषार्थ के फल से
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