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सम्यग्दर्शन का प्रथम सोपान सच्चे देत, शास्त्र और गुरु का यथार्य प्रदान ..
सबसे पहले हमें सच्चे देव, शास्त्र, गुरु का निर्णय करके उन पर यथार्थ श्रद्धा करना चाहिए। देव का स्वरूप
क्षुत्पिपासे भयद्वेषौ मोहरागौ स्मृतिर्जरा। रुग्मृतौ स्वेदखेदौ च मदः स्वापो रतिर्जनिः ।। विषादविस्मयावेतौ दोषा आष्टादशेरिताः। एभिर्मुक्तो भवेदाप्तो निरञजनपदाश्रितः ।।
धर्मसंग्रह श्रा० क्षुधा, तृषा, राग, द्वेष, मोह, जन्म, जरा, मरण, रोग, शोक, भय,स्वेद, खेद, निद्रा, मद, विस्मय (आश्चर्य), रति और चिन्ता ये 18 दोष समान्य रूप से सब संसारी जीवों के होते हैं। आप्त अर्थात् अरहंत भगवान् इन समस्त दोषों से रहित होते
हैं।
आप्त की मुख्य तीन पहिचान -
आप्तेनोच्छिन्नदोषेण, सर्वज्ञेनागमेशिना। भवितव्यं नियोगेन, नान्यथाह्याप्तता भवेत् ।।5।। सच्चा देव नियम से अठारह दोष रहित वीतरागी, सर्वज्ञ और हितोपदेशी होना चाहिए। ऐसा न होने पर सच्चा देवत्व नहीं हो सकता। वीतराग का लक्षण
क्षुत्पिपासाजरातङ्क जन्मान्तकभयस्मयाः
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