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। सम्यग्दर्शन के सोपान
सम्यग्दर्शन मोक्षमार्ग की प्रथम आधारशिला है। वृक्ष में जड़ का, मकान में नींव का जो स्थान है, वही मुक्ति के मार्ग में सम्यग्दर्शन का है। "सम्यग्दर्शन का अर्थ आत्मा को अपनी अनन्त शक्ति की जो विस्मृति हो गयी है, उसकी स्मृति करना है। जो असत्य है, संसार का कारण है, स्वभाव नहीं है, परन्तु अज्ञानता से उसे अपना समझ लिया है, उसे दूर करना एवं हेय का त्याग और उपादेय का ग्रहण करना है। सम्यग्दर्शन को प्राप्त करने के निम्न तीन सोपान हैं।
प्रथम सोपान : देव, शास्त्र एवं गुरु का यथार्थ श्रद्धान । द्वितीय सोपान : तत्त्वों का श्रद्धान। तृतीय सोपान : स्व–पर की यथार्थ श्रद्धा ।
इनमें पहला साधन है तो दूसरा साध्य है, दूसरा साधन है तो तीसरा साध्य है, तीसरा साधन है तो चौथा साध्य है। अर्थात् सच्चे देव, शास्त्र, गुरु की यथार्थ श्रद्धा होगी, तब उनके बताये हुए सात तत्त्वों की यथार्थ श्रद्धा होगी। जब तत्त्वों का यथार्थ श्रद्धान होगा, तब स्व–पर की श्रद्धा होगी।
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