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________________ वह प्रत्येक कार्य विचारपूर्वक ही करता है । कुमार्ग का सेवन बहुत लोग करते हैं, बड़े-बड़े राजा भी उसका सेवन करते हैं, तो धर्मात्मा को संदेह नहीं होता कि उसमें भी कुछ सच्चा होगा। वह तो अपने जिनमार्ग में निःशंक रहता है। वीतराग - सर्वज्ञ अरहन्त व सिद्ध भगवान् को छोड़कर अन्य किसी देव को वह नहीं मानता। रत्नत्रयधारी निर्ग्रन्थ मुनिराज को छोड़ कर अन्य किसी कुगुरु को वह नहीं मानता। सम्यग्दर्शन - ज्ञान - चारित्र रूप जो मोक्षमार्ग है, उसके अतिरिक्त अन्य किसी धर्म को वह मोक्ष का कारण नहीं मानता और उसका सेवन नहीं करता । सम्यग्दृष्टि जिनवचन के विरुद्ध किसी बात को नहीं मानता । सम्यग्दृष्टि को देव - गुरु-धर्म के प्रति मूढ़ता नहीं होती । वह जानता है कि जो वीतराग हो गये हैं, सर्वज्ञ हैं, वे भगवान् ही संसाररूपी समुद्र को सुखाने वाले हैं। कुदेवादि जो स्वयं रागी -द्वेषी हैं, वे हमारे संसारभ्रमण का अन्त नहीं कर सकते। एक बार अकबर शिकार खेलने को निकला, परन्तु मार्ग में भटक गया। गर्मी का मौसम था, अतः कण्ठ सूख गया। पानी की तलाश करते हुये सम्राट गन्ने के खेत में पहुँच गया। किसान ने देखा कि यह तो कोई सम्राट जैसा दिखता है । वेशभूषा तो सम्राटों - जैसी है, हीरे-जवाहरातों की माला कण्ठ में पड़ी है। सम्राट ने किसान से कहा, प्यास लगी है, पानी पीना है, पानी है क्या ?' उसने कहा- आप इस चबूतरे पर सुखपूर्वक बैठिये, आराम कीजिये, मैं आपके के लिये गन्ने का रस लेकर आता हूँ।' वह गया, दो-चार गन्ने तोड़े और उनका रस निकाल लाया । सम्राट को आदर के साथ पीने को दिया। गन्ने का मीठा रस पीकर सम्राट बड़ा प्रसन्न हुआ। सम्राट ने कहा कि बड़ा अहसान है तुम्हारा मुझ पर, कभी शहर आओ तो महल में पधारना । उसने सोचा कि मुझे क्या लेना-देना सम्राट से। जंगल में रहता हूँ, चैन की बाँसुरी बजाता हूँ, आराम की नींद सोता हूँ। सम्राट ने कहा कि 'मेरा पता लिख लो। जब मेरी मदद की 512 2
SR No.009993
Book TitleRatnatraya Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurendra Varni
PublisherSurendra Varni
Publication Year
Total Pages800
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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