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एक राजा को अपना भविष्य जानने की उत्सुकता हुई। बहुत बड़े ज्योतिष शास्त्री को बुलाया गया। उसने गणना कर बताया कि “राजन् ! आपकी उम्र तो इतनी लम्बी है कि आपके परिवार के सभी लोग आपके जीते जी मर जायेंगे।" ज्योतिष शास्त्री ने सीधा भविष्य बता दिया। राजा को क्रोध आ गया, ज्योतिषी दंड का भागी हुआ। दूसरा ज्योतिषी बुलाया गया। उससे भी वही प्रश्न किया। यह भविष्यदर्शी ज्ञानी होने के साथ-साथ समझदार भी था। विद्वान् होना अलग बात है और समझदार होना अलग बात है। विद्वान् कभी-कभी घाटे में रह जाता है, लेकिन समझदार कभी घाटे में नहीं रहता। इस ज्योतिषी ने बताया- "हे राजन् ! आपकी जैसी आयु का योग विरले भाग्यवानों को ही मिलता है। अपने परिवार में आप सबसे अधिक दीर्घायु हैं। पूरे परिवार के सदस्यों की आयु मिला देने पर भी आपकी आयु की बराबरी नहीं हो सकती। राजा बहुत प्रसन्न हुआ और ज्योतिषी को अपने गले का रत्नहार पुरस्कार में दे दिया।
भविष्य दोनों ज्योतिषियों ने एक ही बताया था, पर एक ने मरण की बात कही तो दण्ड का भागी बना। जबकि दूसरे ने सबसे अधिक समय तक जीने की बात कही, तो उसने पुरस्कार पाया। इसका कारण यह है कि संसारी प्राणी को मरण के नाम से भय लगता है। किन्तु संसार में सबसे ज्यादा निश्चित यदि कुछ है, तो वह "मृत्यु" है और सबसे अनिश्चित भी "मृत्यु" ही है। होगी मृत्यु, यह निश्चित है, पर कब होगी यह अनिश्चित है।
युधिष्ठिर ने जलदेवी के प्रश्न, कि दुनियाँ में सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है?, के उत्तर में कहा था-"बस, इससे बड़ा आश्चर्य क्या हो सकता है कि नित्य-प्रति लोग मर रहे हैं और शेष बचे हुऐ लोग ऐसे जीते हैं जैसे कि उन्हें मरना ही नहीं है। इससे बड़ा आश्चर्य और क्या हो सकता है?"
चौथा अत्राण भय है- “मेरा कोई सहायक नहीं है।" सहायक की अपेक्षा ही क्यों? जिसे देव, गुरु और धर्म का सहारा मिल गया, वह असहाय कहाँ? फिर संसार में कौन किसका सहायक है? यहाँ की हर वस्तु, यहाँ का हर व्यक्ति अनाथ/असहाय है। वह तुम्हें क्या सहारा देगा? तुम स्वयं सम्राट होकर भिखारी क्यों बनते हो? सम्यग्दृष्टि को अपनी असुरक्षा का भय नहीं रहता।
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