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टिकट देने वाले बाबू ने सेठ से कहा कि आज तुम्हारा चेहरा बिल्कुल बदल गया है, बीमार थे क्या? इसी प्रकार से रिक्शे वाले ने, तांगे वाले ने तथा पुलिस वालों ने भी सेठ जी से पूछा-चेहरा तो बिल्कुल बदल गया है। अब सेठ जी का हुलिया बिगड़ गया, बुखार आ गया, आखिर में मुकदमें का ख्याल छोड़कर घर लौट आये।
जैसी उपासना कर ली, वैसा परिणाम कर लिया। अपने आप में अगर शुद्ध चैतन्य की उपासना करो, तो शुद्ध चैतन्य-स्वरूप बन जाओ। यह बड़े मर्म की बात है। केवलज्ञान पैदा होने का उपाय क्या है कि हम अपने को 'केवल' देखें, ज्ञानमय देखें। केवल, सिर्फ, मात्र (एलोन) ही अपने को अनुभव करने का फल है केवलज्ञान हो जाना। तो योगियों ने क्या किया? 'मैं केवल ज्ञानमात्र हूँ, यह अनुभव करने में ही जोर दिया और केवल अपने को ज्ञान मात्र ही अनुभव किया। बस, केवल अपने को ज्ञान मात्र अनुभव करना ही शुद्ध तत्त्व का अनुभव है। शुद्ध तत्त्व का ज्ञान करने से शुद्धता मिलती है और अशुद्ध तत्व का ज्ञान करने से अशुद्धता मिलती है।
जैसा मैं अपने को देख लेता हूँ, तैसा ही मैं अपने को पा लेता हूँ| जब बालक लोग आपस में खेलते हैं कि मैं चोर बन जाऊँ, तुम बादशाह बन जाओ, वह सिपाही बन जावे, वह जज बन जावे। जब जज के सामने चोर को पकड़कर लाया जाता है तो कभी-कभी इसी में बालकों में झगड़ा हो जाता है, पिटाई हो जाती है। कहीं-कहीं नाटक में तो जैसे अमर सिंह का नाटक बड़ा प्रसिद्ध बतलाया जाता है, उस नाटक में एक बार जो अमरसिंह बना था उसने जवाब-सवाल में ही सलामत खाँ को, याने जो बालक बना था उसको, मार डाला था। अमरसिंह को जोश आ गया। उसने जो सलामत खां बना था उसको तलवार से मार दिया था। उसकी भावना ऐसी भर गई कि मैं अमरसिंह हूँ| उसने ऐसा नहीं सोचा कि मैं एक लड़का हूँ। बस, जो जैसी भावनायें करता है, वैसी ही भावनायें अपने में प्राप्त कर लेता है। तो मैं निरन्तर अपने में अशुद्ध भावनायें किया करता हूँ। मैं गृहस्थ हूँ, साधु हूँ, पंडित हूँ, त्यागी हूँ, मैं अमुक हूँ,
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