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जीव भेज दिये और यह सारा बैकुण्ठ खाली पड़ा है। विष्णु जी बोले- हम पक्षपाती नहीं हैं। यहाँ कोई आता ही नहीं है। यदि कोई आता हो तो इजाजत है तुम्हें कि उसे ले आओ। वह खुश होकर मृत्युलोक आये और सोचने लगे कि किसे लिवा ले जायें। मार्ग में कोई बूढ़ा आदमी मिला । सोचा कि अब तो यह मरना ही चाहता है, इसे ही लिवा ले जायें। नारद जी ने उस बूढ़े आदमी से कहा कि चलो, तुम्हें स्वर्ग ले चलें । सब लोग जानते हैं कि मरे बिना कोई स्वर्ग नहीं जाता। वह बूढ़ा बोला कि अरे ! मैं ही तुम्हें मिला मारने के लिए? मैं नहीं जाऊँगा, किसी दूसरे को जाकर लिवा ले जाओ । दो-चार बूढ़ों को टटोला, पर सबने जबाव दे दिया, तो बूढ़ों से नारद निराश हो गये। जवान से कहा कि चलो, तुम्हें स्वर्ग ले चलें । जवान की बात जानते ही हो। जवान बोला कि अभी लड़की की शादी पड़ी है, दुकान खोलनी है, सारा बन्दोबस्त करना है। तो जवानों ने भी इसी तरह मना कर दिया ।
सोचा कि अब किससे कहें? अच्छा, चलो, अब बच्चों के पास चलें । शायद बच्चों में से कोई तैयार हो जाय । एक मंदिर के चबूतरे पर 18-19 वर्ष का बच्चा तिलक लगाये बैठा था। नारद बोले- बेटा! चलो, तुम्हें बैकुण्ठ ले चलें । वह बैकुण्ठ जाने को तैयार हो गया। नारद ने कहा कि वहाँ चलने के लिए सभी झंझट त्यागने होंगे। वह बोला कि नारद जी ! हमारी सगाई हो रही है, कल बारात जायेगी। नाते रिश्तेदार भी ज्यादा आ रहे हैं। तो आप कृपा करके 4-5 वर्ष गम खा जाइए। फिर आना, तो चलेंगे। उसका विवाह भी हो गया। 5 वर्ष बाद नारद जी आये, बोले, बेटा! अब चलो। बेटा बोला- महाराज ! अभी एक साल हुआ बच्चा हुआ है, तनिक खिला ही लें। अभी तक एक साल तक शर्म के मारे मैं छू भी नहीं सका। अब आप 5 वर्ष गम खावें, फिर आना, तब चलेंगे । 5 वर्ष बीत गये। फिर नारद आये, बोले, बेटा! चलो। बेटा बोला- महाराज ! लड़के को पढ़ा लें, योग्य कर लें, यह कम-से-कम अपने पैरों के बल खड़ा तो हो जाय। आपसे निवेदन है कि आप 20 वर्ष के बाद जरूर आना । अब 20 वर्ष के बाद फिर नारद आये, बोले- बेटा! चलो। बेटा बोला- महाराज ! लड़के की सगाई हो गई, अब अपने नाती को तो देख लें। कृपा करके आप 10-15 वर्ष के बाद
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