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तुम्हारी कीमत 100 रुपये है या नहीं? उस ब्राह्मण ने तोते से पूछा- कहो तोते! तुम्हारी कीमत 100 रुपये है क्या? तोते ने कहा-इसमें क्या शक? कीमत ब्राह्मण ने सोचा कि तोता योग्य है, सो उसे 100 रुपये में खरीद लिया। ब्राह्मण ने अपने घर लेजाकर उसे खूब अच्छी-अच्छी चीजें खिलाईं। शाम को ब्राह्मण रामचरित्र लेकर बैठ गया। राम की कहानी सुनाने लगा। तो तोता बोला- इसमें क्या शक? अब वह रामचन्द्र जी के गुण गाने लगा। तोते से पूछा- कहो तोते! ठीक है न? तो उसने कहा- इसमें क्या शक? ब्राह्मण ने कहा कि यह तो बहुत विद्वान् मालूम होता है। कुछ आत्मस्वरूप की चर्चा करने लगा। फिर पूछा- कहो ठीक है न? तो तोते ने कहा- इसमें क्या शक? अब तो ब्राह्मण को भी शक हुआ कि यह यही बात बार-बार बोलता है। ब्राह्मण ने पूछा- कहो तोते! क्या मेरे 100 रुपये पानी में चले गये? तोता बोला- इसमें क्या शक? ।
ज्ञान वही है, जिसको पाकर यह जीव चारित्र को धारण कर अपने स्वरूप में लीन हो जाये । स्वरूप में लीन होने का अर्थ क्या है? यह आत्मा जो परपदार्थों के संबंध में नाना विकल्प मचा रहा है, इष्ट-अनिष्ट, झगड़ा-विवाद, पक्ष, नाना तंरगें उठ रहीं हैं, ये सब तरंगें समाप्त हो जायें और केवल एक जानन मात्र का अनुभव रहे, कोई विकल्प न उठे, ऐसी स्थिति बने, उसे कहते हैं स्वरूप में लीन होना। ऐसी स्थिति जिस ज्ञान को पाकर हो, वही सच्चा ज्ञान है।
आत्मश्रद्धा के अनन्तर आत्मबल के बढ़ने से कर्मशत्रु भाग जाते हैं और आत्मा मुक्त हो जाता है। देखो, कोमलांग सुकुमाल का शरीर श्रगालिनी द्वारा विदीर्ण हुआ, तो भी वे रंचमात्र चलायमान न हुये। अभी कुछ संसार शेष था, इसलिये सर्वार्थसिद्धि विमान प्राप्त किया। आगे मनुष्यभव धारण कर मोक्ष जाएँगे। यह आत्मबल का ही प्रताप है। जहाँ तक बने, समता और शान्ति से मोक्षमार्ग अपने में ही देखो। यही आत्मज्ञान तुम्हें परमपद तक पहुँचा देगा।
प्रत्येक प्राणी सुख चाहता है और दुःख से छूटना चाहता है। उसका प्रत्येक प्रयत्न सुख प्राप्ति के लिये ही होता है, परन्तु दुःख के सिवाय उसे कुछ भी प्राप्त नहीं होता। हमारी यह धारणा मात्र है कि हमें अमुक पदार्थ सुखी करता है और अमुक दुःखी करता है। सब पदार्थ अपने-अपने द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव से परिणमते
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