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3. उपदेश सम्यक्त्व— जो तीर्थंकरों के उपदेश से प्रगट हुए सम्यग्ज्ञान स्वरूप जो आगम-समुद्र हैं, उनके तथा गणधर श्रुतकेवली, आचार्य आदि के उपदेश से उत्पन्न हुये सम्यक्त्व को 'उपदेश सम्यक्त्व' कहते हैं।
4. सूत्र सम्यक्त्व - मुनियों के चरण समीप में बैठकर आचार - सूत्रों के विवरण सुनने से उन पर श्रद्धान होने से जो सम्यक्त्व होता है, उसे 'सूत्र सम्यक्त्व' कहते हैं ।
5. बीज सम्यक्त्व - मोहनीय कर्म के उपशम होने से किन्ही - किन्ही को जो कठिन शास्त्रीय रहस्यों के एवं कारण बीजों के मर्म को समझाने से जो सम्यक्त्व होता है, उसे बीज सम्यक्त्व कहते हैं।
6. संक्षेप सम्यक्त्व - पदार्थों को संक्षेप से समझकर उन पर श्रद्धान करने से जो सम्यक्त्व उत्पन्न होता है, वह 'संक्षेप' सम्यक्त्व है।
7. विस्तार सम्यक्त्व – द्वादशांग वाणी को विस्तारपूर्वक सुनकर उसके समझने से जो सम्यक्त्व उत्पन्न होता है, वह 'अवगाढ़ सम्यक्त्व' है।
8. अर्थ सम्यक्त्व- शास्त्रवचनों के बिना किसी अन्य पदार्थ से उत्पन्न जो सम्यक्त्व है, वह 'अर्थ सम्यक्त्व' है।
9. अवगाढ़ सम्यक्त्व- अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य रूप श्रुतज्ञान को अवगाहन करने से जो सम्यक्त्व उत्पन्न होता है, वह 'अवगाढ सम्यक्त्व' है । 10. परमावगाढ़ सम्यक्त्व - केवलज्ञान उत्पन्न होने से जो सहभावी गुण की परम निर्मलता होती है, वह 'परमावगाढ़ सम्यक्त्व' है।
सम्यग्दर्शन का काल क्र. सम्यग्दर्शन
1. औपशमिक सम्यग्दर्शन 2. क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन
3. क्षायिक सम्यग्दर्शन
(संसार अवस्था में)
4. क्षायिक सम्यग्दर्शन
उत्कृष्ट काल
अन्तर्मुहूर्त 66 सागर
8 वर्ष अन्तर्मुहूर्त कम 2 पूर्व कोटि अधिक 33 सागर
सादि अनन्त
CU 401
S
जघन्य काल
अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त