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सम्यग्दर्शन के भेद - करणानुयोग की पद्धति से सम्यग्दर्शन के औपशमिक, क्षायोपशमिक और क्षायिक ये तीन भेद होते हैं। द्रव्यानुयोग की पद्धति से सम्यग्दर्शन के निश्चय और व्यवहार की अपेक्षा दो भेद होते हैं। यहाँ जीवाजीवादि सात तत्त्वों के विकल्प से रहित, परद्रव्यों से भिन्न आत्मा के श्रद्धान को निश्चय सम्यग्दर्शन कहते हैं और सात तत्त्वों के श्रद्धान को तथा देव-शस्त्र-गुरु के श्रद्धान को व्यवहार सम्यग्दर्शन कहते हैं। अध्यात्म में वीतराग सम्यग्दर्शन और सराग सम्यग्दर्शन के भेद से दो भेद होते हैं। यहाँ आत्मा की विशुद्धिमात्र को वीतराग सम्यग्दर्शन कहते हैं और प्रशम, संवेग, अनुकंपा और आस्तिक्य इन चार गुणों की अभिव्यक्ति को सराग सम्यग्दर्शन कहते हैं। उत्पत्ति की अपेक्षा सम्यग्दर्शन के निसर्गज और अधिगमज दो भेद होते हैं। आचार्य उमास्वामी महाराज ने 'तत्त्वार्थ सूत्र' ग्रंथ में लिखा है
___ "तन्निसर्गादधिगमाद्वा" तत्- उस सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति अधिगमज और निसर्गज दो प्रकार से होती है।
अधिगमज- जो पर के उपदेश आदि से श्रद्धा जाग्रत होती है, उसे अधिगमज सम्यग्दर्शन कहते हैं।
निसर्गज- जो पर के उपदेश आदि की अपेक्षा न रखता हुआ स्वभावतः उत्पन्न होता है, उसे निसर्गज सम्यग्दर्शन कहते हैं। "आत्मानुशासन” ग्रंथ में सम्यग्दर्शन के 10 भेद बताये गये हैं
आज्ञा मार्ग समुद्भवमुपदेशात् सूत्र बीज संक्षेपात्।
विस्तारार्थाभ्यां, भवमवगाढ़ परमावगाढ़े च।। आज्ञा, मार्ग, उपदेश, सूत्र, बीज, संक्षेप, विस्तार, अर्थ, अवगाढ़ और परमावगाढ़ सम्यक्तव के भेद से सम्यग्दर्शन 10 भेद वाला है।
1. आज्ञा सम्यक्त्व - वीतराग सर्वज्ञदेव की आज्ञा रूप वचनों का श्रद्धान करना 'आज्ञा सम्यक्त्व' है।
2. मार्ग सम्यक्त्व- मोहनीय कर्म के शांत होने से परिग्रहादि रहित श्रद्धान करना ‘मार्ग सम्यक्त्व' है।
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