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तब वृक्ष के ऊपर बैठे बंदर ने कहा-अरे, सिंह राजा । जैसी मूर्खता तुम कर रहे हो, उसी प्रकार इसके पहले तुम्हारे दादा ने भी अपनी मूर्खता से अपने प्राण
खो दिये थे। जैसे तुम मेरी छाया को ही बंदर समझकर उसके ऊपर पंजे मार रहे हो, उसी प्रकार तुम्हारे सिंह दादा ने भी कुँए में अपनी छाया देखकर उसे ही असली सिंह मान लिया था और उससे लड़ने के लिये कुँए में छलाँग लगाकर मर गये थे।
तब सिंह बोला – अरे, बंदर भाई। जैसी मेरे दादा ने भूल की थी, वैसे ही तुम्हारे दादा ने भी भूल की थी। एक बार तुम्हारे बंदर दादा वृक्ष के ऊपर बैठे थे और नीचे उनकी छाया पर सिंह ने पंजा मारा, तब ऊपर बैठे तुम्हारे दादा घबरा गये कि सिंह मुझे मार डालेगा, इस डर से नीचे गिर गये। उसी प्रकार तुम भी नीचे गिरने वाले हो। ___ सिंह राजा की बात सुनकर बंदर ने हँस कर कहा-मैंने निर्ग्रन्थ मुनिराज से उपदेश को सुना है, जिससे मुझे जड़ शरीर और चेतन आत्मा का भेद ज्ञात हो गया है। अब छाया को अपनी मानकर प्राण गँवाने की मूर्खता मैं नहीं करूँगा। तुम छाया पर चाहे जितने पंजे मारो, फिर भी मैं तो छाया से भिन्न निर्भयता से अपने स्थान पर बैठा रहूँगा।
बंदर की बात सुनकर सिंह राजा समझ गये कि यहाँ हमारी कोई चालबाजी नहीं चलेगी, बल्कि बंदर की बुद्धिमानी के प्रति उसे बहुमान जागृत हुआ कि वाह! देह और छाया की भिन्नता के भान से इस बंदर को कैसी निर्भयता है। फिर देह और आत्मा की भिन्नता जानने से कैसी निर्भयता आयेगी।
इस प्रकार सिंह के विचारों में भी परिवर्तन हो गया। सिंह ने अपने विचार बंदर को सुनाये, तब बंदर ने कहा-राजा! तुम्हारी बात बिल्कुल सच्ची है। देह
और आत्मा की भिन्नता के ज्ञान से इस सिंह से तो क्या बल्कि कालरूपी सिंह से भी डर नहीं रहता। कालरूपी सिंह अर्थात् मृत्यु आ जावे तो वह उसे पीछे धकेल देता है। अरे काका! तू यहाँ से चला जा। मेरे पास तुम्हारा जोर नहीं चलेगा, तुम्हारे पंजे हमारे ऊपर नहीं चलेंगे, क्योंकि मैं कोई देह नहीं हूँ। मैं तो अविनाशी आत्माराम हूँ, मृत्युरूपी सिंह मुझे मार नहीं सकता। हे सिंह राजा! अब
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