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जब दुष्ट कमठ ने अपने भाई मरुभूति को मार डाला, तो यह सुनकर राजा अरविन्द उदासचित्त होकर राजमहल की छत पर बैठ गये और वैराग्य का विचार करने लगे, तभी आकाश में सुन्दर मन्दिर का दृश्य बन गया। उसकी अदभुत शोभा देखकर राजा को ऐसा विचार आया कि मैं भी अपने राज्य में ऐसा ही सुन्दर जिनमंदिर बनवाऊँगा। ऐसा विचार करके उन्होंने बादलों के मंदिर के चित्र को बनवाने की तैयार की, परन्तु तब तक बादल बिखर गये और उस अद्भुत मंदिर की रचना अदृश्य हो गयी।
राजा यह घटना देखकर दंग रह गये। उन्होंने विचार किया कि बादलों की तरह ही राजपाट, महल, शरीर इत्यादि सभी संयोग भी असार और विनाशीक हैं। अरे! ऐसे अस्थिर इन्द्रिय-विषयों में मग्न रहना जीव को शोभा नहीं देता। जिसे स्वयं का हित करना हो, उसे इस मोह में समय गँवाना योग्य नहीं है। जिस प्रकार यह बादल क्षण भर की देर किये बिना बिखर गये, उसी प्रकार अब मैं भी एक पल भी गँवाये बिना, यह संसार छोड़कर, मुनि होकर कर्म के बादलों को बिखेर कर नष्ट करूँगा। इस प्रकार वैराग्यभावना पूर्वक वे अरविन्द राजा राजपाट छोड़कर वन चले गये और दिगम्बर गुरु के पास दीक्षा लेकर मुनि हो गये । भगवान् पार्श्वनाथ के जीव ने हाथी की पर्याय में इन्हीं मुनिराज के उपदेश से सम्यग्दर्शन प्राप्त किया था।
इस दुर्लभ मनुष्यभव में धर्म करने के लिये समय निकालना चाहिये। संसार के पापों और शरीर आदि की चिन्ता में व्यर्थ समय गँवाने जैसा नहीं है। जन्म के साथ तुम जिस शरीर को लाये हो, वह भी जब तुम्हारा नहीं है, तो प्रत्यक्ष रूप से भिन्न दिखने वाले परिवारजन तुम्हारे कैसे हो सकते हैं? यह तो एक मुसाफिरखाना है। ___ कोई पागल मनुष्य इधर-उधर भटकता हुआ नदी के किनारे जाकर बैठ गया। वहाँ किसी राजा ने आकर पड़ाव डाला, तो वह अपने पास ठहरे हुये हाथी, घोड़ा, रथ, मनुष्य इत्यादि को देखकर विचार करने लगा कि यह मेरे हाथी, घोड़े आदि आ गये, मेरी सेना आ गई। ऐसा मानकर वह बहुत प्रसन्न हुआ । थोड़ी देर बाद जब पड़ाव उठने लगा, तब वह मनुष्य चिल्ला-चिल्लाकर
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