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है। कुछ लोग शरीर के खोल से जुड़े रहते हैं, तो शरीर की चोट के साथ उनको भी चोट पहुँचती है पर जो अपने को शरीररूपी खोल से अलग समझते हैं, उनके शरीर को काटने पर भी उनको कोई दुःख और पीड़ा नहीं होती।
पर जो मोही हैं, जिनके भीतर राग पड़ा हुआ है, वे शरीर से जुड़े हुए हैं। जो गीलापन है, वही राग है। जिन्होंने शरीर को ही अपना होना मान रखा है, उनका शरीर और आत्मा का अलग-अलग अस्तित्व होने पर भी वे एक अनुभव करते हैं। वे शरीर के मरण से अपना मरण और शरीर की उत्पत्ति से अपनी उत्पत्ति होना मानते हैं। तन उपजत अपनी उपज जान, तन नशत आपको नाश मान। वे शरीर की पीड़ा को अपनी पीड़ा मानते हैं। इस मोही बहिरात्मा जीव को शरीर के प्रति इतनी अधिक आशक्ति होती है कि प्राण भले चले जायें, पर पूँछ का बाल न टूटे।
चामरी गाय की पूँछ के बाल सुनहरे होते हैं। उसे अपने बालों से बड़ा प्रेम होता है। एक बार चामरी गाय की पूंछ का बाल एक झाडी में उलझ गया। सामने शिकारी धनुष-बाण लिये आ गया। गाय आँखों से देख रही है कि मेरा शत्रु सामने खड़ा है, लेकिन सोचती है कि मेरी पूँछ का बाल टूट न जाये, इसलिये वह वहाँ से भागती नहीं है। जिसका परिणाम यह होता है कि शिकारी अपने बाण से उसके प्राण छीन लेता है। प्राण भले चले गये, लेकिन बालों का मोह नहीं छोड़ा।
इसलिये मोह को महामद कहा गया है। यह मोह ही संसारभ्रमण का कारण है। यह संसारी प्राणी मोह के कारण शेखचिल्ली के समान नाना प्रकार की कल्पनायें किया करता है
एक मनुष्य था। वह किसी तेली का घड़ा सिर पर रखकर उसके साथ चला जा रहा था। वह मनुष्य मार्ग में सोचता है यह तेली मुझे घड़ा ले जाने के पैसे देगा, उससे मैं एक मुर्गी खरीदूंगा। मुर्गी से बच्चे होगें, उन्हें बेचकर बकरी खरीदूंगा। बकरी के बच्चे होंगे, उन्हें बेचकर अपनी शादी करूँगा। फिर एक मकान खरीदूंगा और उसमें ऐश से जीवन बिताऊँगा। बाद में मेरे भी बच्चे होंगे और वे परस्पर खूब खेलेंगे, कभी-कभी झगड़ेंगे भी। जब वे झगड़ते-झगड़ते
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