________________
भूल आपको भरमत वादि।' इस जीव ने मोह-रूपी तेज शराब पी रखी है, इसलिये अपने स्वरूप को भूलकर व्यर्थ ही दुःखी हो रहा है।
कोई एक शराबी था। वह शराब की एक दुकान पर गया और बोला-हमें अच्छी शराब दो। दुकानदार ने बताया कि यह बहुत बढ़िया है, इसे ले लो। वह बोला-नहीं, हमें तो बढ़िया शराब चाहिये। दुकानदार ने कहा देखो, हमारी दुकान पर ये जो पाँच/सात व्यक्ति पड़े हुये हैं, उनसे तुम अंदाज लगा सकते हो कि शराब बढ़िया है या नहीं। मोह में क्या हुआ करता है? मोह में आकुलतायें होती हैं, मगर देखते हैं कि ये जगत के सब जीव वाह्य पदार्थों में ही चिंतायें किया करते हैं, मोह किया करते हैं, दुःखी होते जाते हैं। यह सब तो मोह मदिरा का परिणाम है। फिर भी मोह के नशे के दुष्परिणाम का विश्वास यह मोही नहीं करता।
बाह्य पदार्थों के विकल्प छोड़ दो और अपने ज्ञानरस का स्वाद लो। यदि अपनी सहज इस स्वतंत्रता का विश्वास हो जाये तो यही अनपम काम है। बाहरी पदार्थों से नहीं। दो लड़के 20 हाथ की दूरी पर खड़े हैं। यदि एक लड़का दूसरे को अंगुली दिखाकर चिढ़ाये, तो जिस लड़के को चिढ़ाया जा रहा है, वह यदि विकल्प बना ले कि, अरे! यह तो मुझे चिढ़ा रहा है, ऐसी कल्पना बनाने से ऐसा ख्याल करने से उसे दुख होता है, दूसरे लड़के की अंगुली से दुःख नहीं होता। बड़े-बड़े लोग किस कारण से दुःखी हो रहे हैं? तो क्या विरोध |ी के कारण से दुखी हो रहे हैं। अरे उन्होंने स्वयं कल्पना बना ली है कि यह मेरा विरोधी है, यह मेरे खिलाफ है, यदि यह कल्पना बना ली है तो क्लेश होते हैं, दुःख होते हैं। देखो! इन दुश्मनों से दुःख नहीं होता है। केवल कल्पनायें कर लेने से दुःख होता है।
एक राजा था। वह किसी राज्य पर चढ़ाई करने के लिये जा रहा था, सो वह सेनासहित जा रहा था। रास्ते में जंगल से निकला। उसी जंगल में एक साध तु महाराज थे। राजा जिस राजा पर चढ़ाई करने जा रहा था वह साधु जी के पास बैठा था। साधु जी उसको कुछ उपदेश दे रहे थे। अब राजा के कान में शत्रुओं के शब्द सुनाई पड़े। राजा ने समझ लिया कि शत्रु आ रहे हैं। कहाँ तो
DU 347